मजदूरों की मौत का जिम्मेदार निर्दयी ठेकेदार
तस्वीर जिसे देखकर हर किसी का दिल पसीज गया । इंसान रोटी के लिए सब कुछ करता है । जिसकी तलाश में गांव से शहर आया था । वो रोटी उसके टुकड़े-टुकड़े हुए शरीर के पास पड़ी थी । लेकिन उसे खाने वाला चिरनिद्रा में सो गया था । महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मालगाड़ी से 16 मजदूरों के कटने का मंजर दिल को चीरने वाला था। जिसने भी ये खौफनाक मंजर देखा, सहम उठा । औरंगाबाद रेल हादसे के शिकार प्रवासी मजदूर 20 से 35 साल की उम्र के थे । उन्हें महाराष्ट्र के जालना से 600 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश में उमरिया, शहडोल, कटनी लौटना था । एसआरजी कंपनी में काम करते थे, जो लॉक डाउन के कारण बंद हो गई, रोजगार चला गया । रात में घण्टों पैदल चलते हुए 36 किलोमीटर तक चल चुके थे, शरीर मे जान जैसे निकल चुकी थी । एक-एक कदम चलना भारी हो रहा था । रात भर बिना सोए केवल पैदल चलते जाना जिसके कारण हुई थकान की वजह से बेसुध पटरियों पर सो गये । सोचा था कि लॉक डाउन में ट्रेन नही चल रही है पटरियों को ही बिस्तर मानकर सो गए । थकान में निढाल पढ़े मजदूर सुबह 5.15 बजे पर आई मालगाड़ी की आवाज तक नही सुन पाए । मालगाड़ी वाले ड्राइवर ने हॉर्न बजाया या नही यह भी जांच का विषय है । रेलवे कह रहा है कि मालगाड़ी के ड्राइवर ने ब्रेक लगाने की कोशिश की लेकिन गाड़ी नही रुकी । पंजाब में जब विजया दशमी पर हादसा हुआ था तब कहा गया था कि अचानक ब्रेक लगाते तो ट्रेन की बोगी आपस में टकरा जाती और उससे अंदर बैठे यात्री मर जाते । लेकिन यहां तो मालगाड़ी थी ब्रेक लगाने से सिर्फ मालगाड़ी को नुकसान होता पर 16 जाने बच जाती...? लेकिन मजदूर थे मर भी गए तो चिंता किसको है शोक संदेश को सोशल मीडिया पर पोस्ट दो । 10 लाख की घोषणा कर दो । देश को छोड़कर विदेश गए लोगो के लिए विमान सुविधा वो भी एकदम नि:शुल्क उन्हें वापस देश में लाने के लिए ओर आस-पास के देश के लोगो को लाने में भी कोई दिक्कत नही । लेकिन मजदूरों के लिए रेल बस की सुविधा तक नसीब नही पैदल सैकड़ो किमी चलने पर मजबूर । किसी एक नेता को चला कर दिखा दो 100 किमी फिर पूछना की अब जान बची है कि नही...? गर्मी के मौसम में जरा सा पैदल चलना भी कितना घातक होता है हम सब जानते है । मजदूर इतने मजबूर क्यो हुए...? मृतक की पत्नी का यह बयान ध्यान से पढ़ना "हम 10 लाख रुपए का क्या करेंगे...? सरकार ने अगर गाड़ी चला दी होती तो इससे कम पैसे में मेरा पति जिंदा घर लौट आता।"सरकार से सवाल करते ये शब्द उस पत्नी के थे जिसने औरंगाबाद ट्रेन हादसे में अपने पति को खोया है। पुष्पा सिंह (22 वर्ष) ने दो दिन पहले ही स्वयं सहायता समूह से एक हजार रुपए निकालकर अपने पति बिरगेंद्र सिंह (24 वर्ष) को भेजे थे ताकि वे घर वापस आ सकें।
"लॉकडाउन के बाद से कंपनी बंद थी। पिछले महीने का जो पैसा मिला ठेकेदार ने उसमें से खाने का पूरा पैसा काट लिया और बोला कि अभी तुम्हे 500 रुपए और चुकाने हैं तभी यहां से जा पाओगे। समूह से पैसा लेकर भेजा था ताकि वो ठेकेदार को पैसे देकर घर वापस आ सकें," ये कहते पुष्पा रो पड़ीं, "मुझे क्या पता था कि मुझे उनकी मौत की खबर मिलेगी।"सोचिये इन 16 कि मौत का जिम्मेदार यही ठेकेदार है...? इसी ने मजबूर किया उन्हें घर जाने को...? इसी ने मजबूर किया उन्हें जान से खेल जाने को...? क्या ये कम्पनी ओर ठेकेदार कुछ माह भी इन मजदूरों को भोजन आवास नही दे सकते थे...? इन्ही मजदूरों के दम पर तुम पैसे कमाकर सेठ कहलाते हो । क्या सिर्फ 2 माह लॉक डाउन में तुम इनकी मदद नही कर पाए । लानत है ऐसे अमीरों पर थू है ऐसे सेठों ओर ठेकेदारों पर ।
लॉक डाउन में सबसे बुरे हाल मजदूरों के है । सरकार के बड़े-बड़े दावों की पोल इस घटना से खुल चुकी है । सरकार जिन मजदूरों के खातों में पैसा भेजती है जो पंजिकृत मजदूर है लेकिन अनेकों ऐसे मजदूर है जिन्हें यह नही पता कि पंजीयन होता कैसे है...? अशिक्षा के कारण लाचार मजबूर इन लोगो की किसी को सुध नही है ।
स्पेशल ट्रेन से शव आ रहें है यही स्पेशल ट्रेन से जिंदा मजदूर को ले आते तो आज 16 बेशकीमती जान बच जाती । इस हादसे के चश्मदीद धीरेंद्र सिंह ने कहा कि "वे पटरियों पर बैठ गए और धीरे-धीरे नींद में चले गए। मैं दो अन्य लोगों के साथ कुछ दूर आराम कर रहा था। कुछ समय के बाद एक मालगाड़ी आई... मैंने उन्हें आवाज दी लेकिन वे मुझे सुन नहीं पाए और ट्रेन उनके ऊपर से निकल गई।"
उन्होंने कहा, हमने एक सप्ताह पहले पास के लिए आवेदन किया था। कोरोना वायरस में लागू लॉकडाउन के कारण हम बेरोजगार हो गए थे और हमारे पास पैसे नहीं थे इसलिए हम वापस अपने गांव जा रहे थे।"
सरकार कह रही है मजदूरों के खाते में करोड़ो रूपये डाल दिये गए तो ये क्या मजदूर नही थे...? इनके खाते खाली क्यो थे...?
अपने साथियों के बीते रात के वाक्या वीरेंद्र सिंह बता रहे थे-"हमें पता था कि रास्ते में खाने की दिक्कत होगी इसलिए हमने रोटी और अचार रख लिया था। रातभर चलते रहे। कुछ लोगों को नींद भी आ रही थी। समय यही सुबह के चार बज रहे थे। तब हमें यह नहीं पता था कि हम किस जगह है लेकिन बहुत देर से रेल की पटरी के किनारे चल रहे थे। अब घर जाकर पता नहीं क्या जवाब दूंगा।"
हाल ही में मजदूर दिवस धूमधाम से बनाया गया । शानदार भाषण के वीडियो डाले गए लेकिन असल मे मजदूर की चिंता सिर्फ दिखावा है । राजनीति में नेताओं ने संवदेनशील होने का दिखावा करने के लिए गरीब मजदूर किसान नाम का खूब सहारा लिया है । इससे उन्हें खूब वोट मिलते है लेकिन पद पर आते ही मजदूर अछूत हो जाता है । देश की जनता जागो । अपने नेताओं से जवाब मांगो.....?
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लेखन एवं संकलन मिलिन्द्र त्रिपाठी