सर जी.एल. परमार जिनका जीवन,संघर्षों से सफलता की प्रेरक दास्तां है
कोरोना महामारी के दौर में चारों और आमजन में इस वायरस को लेकर भय एवं निराशा का वातावरण है । यह परिस्थिति ऐसी है जो मानव के वश में नही है । घर के अंदर रहकर अनेकों लोगो मे भविष्य को लेकर नकरात्मकता हावी है । ऐसे में हमारे आस-पास रहने वाले अनेक ऐसे लोग है जिनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ है । संघर्षों से या तो व्यक्ति टूट जाता है या निखर जाता है । अनेक महापुरुष इस देश मे ऐसे है जो संघर्षों में पले बढ़े और फिर बाद में उन्होंने दुनिया को चमत्कृत किया । आखिर इस संघर्ष में ऐसा क्या है...? हम देखते है अमीर घरों में बच्चे को हर सुख सुविधा थाली में सजा कर दी जाती है यहां तक कि उसके माता-पिता इतना पैसा कमाकर रखते है कि वो पूरी उम्र कुछ न करें तो भी वह बैठ- बैठे खा सकता है । लेकिन समाज मे उस व्यक्ति को दिल से वो सम्मान नही मिलता जो संघर्ष के साये से निकल कर सफल हुए व्यक्ति को मिलता है । संघर्षशील व्यक्ति का जीवन समाज के लिए प्रेरक होता है । मेरे जीवन मे मेने ऐसे  व्यक्ति भी देखें है जो बहुत गरीबी से उठकर संसद भवन तक पहुंचे । देश के पीएम को ही ले लीजिए चाय बेचने वाले से प्रधानमंत्री तक का सफर । आज जब वो बोलते है या कोई योजना बनाते है तो उन्हें धरातल की एक-एक हकीकत पता होती है क्योंकि वो उस जगह से होकर गुजरे है । लेकिन आज बात उज्जैन में वीणा कोचिंग क्लास के संचालक सर जी. एल. परमार की । ध्यान से दिए गए इस फोटो को देखिए यह फोटो अपने आप मे पूरी दास्तां खुद बयान करता है । में सर के संपर्क में कई सालों से हूँ चुकी सामाजिक जीवन मे हर साल कोई न कोई गरीब परिवार मेरे पास ऐसे आते है जो रु.3000/- प्रति माह में अपना गुजर बसर करते है । उनके बच्चे पढ़ना चाहते है वो सरकारी स्कूल में दाखिला तो ले लेते है, इन स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था से आप भली-भांति परिचित भी है । ऐसे में बच्चों के लिए एक मात्र विकल्प कोचिंग ही बचती है लेकिन गरीब परिवार के इन बच्चों के पास कोचिंग लगवाने के पैसे नही होते ।चुकी घर मे भी कोई पढा लिखा सदस्य नही होता है मार्गदर्शन की आशा से ऐसे लोग जब मेरे पास आते है तो मेरे दिमाग मे एक ही नाम आता है जिन्हें में फ़ोन करता हूँ । वो नाम है जी. एल. परमार सर का ओर वो निःशुल्क उस बच्चे को अपने यहां एडमिशन देते है और उसे अच्छे प्रतिशत से हाईस्कूल पास भी करवाते है । एक होनहार बच्चे को कोई भी कोचिंग क्लास वाला अच्छे प्रतिशत दिलवा सकता है लेकिन कमजोर छात्र को यदि कोई 70 % अंक दिलवा देता है तो वो ही इस दौर का असली टीचर(शिक्षक) कहलाता है। जी.एल. परमार सर उज्जैन में प्रति वर्ष सैकड़ो बच्चों को 90 % से अधिक अंक दिलवाते है । इसके पीछे बच्चों की मेहनत के साथ-साथ टीचर(शिक्षक) की मेहनत ,प्लानिंग भी अपना काम करती है । सर ने बहुत कम शब्द में अपनी दास्तां बयान की :- "बात सन  1982 के लगभग की है , गांव में कक्षा 8वी में टॉप किया था ...!

अब  आगे की पढ़ाई कैसे हो , क्योंकि उस समय गाँव में स्कुल 8 वी क्लास तक ही था , पिताजी की एक छोटी सी पान की दुकान थी , जमीन जायजाद कुछ थी नहीं , बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चलता था , अब आगे पढ़ाई के लिए क्या करे , 

माँ ने अपने जेवर बेच कर थोड़े बहुत रूपये पिताजी को दिए , आगे की पढ़ाई के लिए हम दोनों भाइयो को  पिताजी उज्जैन ले आये , समाज की धर्मशाला में छोटा सा कमरा किराये पर लिया , धर्मशाला में झाड़ू-पोछा और यात्रियों को बिस्तर कमरा देना का काम मिल गया , पिताजी के साथ गोंसा दरवाजे पर अगरबत्ती कारखाने में भी काम किया , साथ में पढ़ाई भी जारी रखी ,माँ ने भी गाँव में कई सालो तक  दुसरे के खेतो में मेहनत-मजदूरी की , क्योंकि छोटी बहन और दादी का भार उन पर ही था , संघर्षो की बहुत लम्बी पीड़ादायी कहानी रही...!

परन्तु बाबा श्री महाकाल जी की बहुत-बहुत असीम कृपा रही , जिन्होंने अपनी नगरी में आसरा दिया और जीवन यापन का सहारा दिया , 

आज माँ पिताजी अपने बेटे,पोते-पोती के साथ है , उनकी छत्रछाया आज भी सर पर है ...."

ह्रदयस्पर्शी इस संघर्ष पूर्ण जीवन के बाद भी हमेशा अपने चेहरे पर एक मुस्कान लिए सर आज भी पर्दे के पीछे रहकर काम करने में विश्वास करते है । निरंतर उज्जैन के भविष्य को तराश रहें है । फेसबुक पर जैसे ही उनके जीवन संघर्ष की दास्तां देखी मेने तय कर लिया कि इसे आमजन तक लेकर जाऊंगा ताकि उन्हें प्रेरणा मिलें की सघर्षों की भट्टी से तपकर कैसे खरा सोना बना जाता है । सर को ह्रदय से मेरा सलाम...!

लेखक मिलिन्द्र त्रिपाठी 


(हमारे उज्जैन जिले में यदि आपके संपर्क में ऐसे ही कोई शख्सियत हो जिसका जीवन सघर्षों से सफलता की ऊंचाई तक पहुंचा हो तो आप मेरे वाट्स एप नम्बर 9977383800 पर मुझे बता सकते है । )