अब आगे की पढ़ाई कैसे हो , क्योंकि उस समय गाँव में स्कुल 8 वी क्लास तक ही था , पिताजी की एक छोटी सी पान की दुकान थी , जमीन जायजाद कुछ थी नहीं , बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चलता था , अब आगे पढ़ाई के लिए क्या करे ,
माँ ने अपने जेवर बेच कर थोड़े बहुत रूपये पिताजी को दिए , आगे की पढ़ाई के लिए हम दोनों भाइयो को पिताजी उज्जैन ले आये , समाज की धर्मशाला में छोटा सा कमरा किराये पर लिया , धर्मशाला में झाड़ू-पोछा और यात्रियों को बिस्तर कमरा देना का काम मिल गया , पिताजी के साथ गोंसा दरवाजे पर अगरबत्ती कारखाने में भी काम किया , साथ में पढ़ाई भी जारी रखी ,माँ ने भी गाँव में कई सालो तक दुसरे के खेतो में मेहनत-मजदूरी की , क्योंकि छोटी बहन और दादी का भार उन पर ही था , संघर्षो की बहुत लम्बी पीड़ादायी कहानी रही...!
परन्तु बाबा श्री महाकाल जी की बहुत-बहुत असीम कृपा रही , जिन्होंने अपनी नगरी में आसरा दिया और जीवन यापन का सहारा दिया ,
आज माँ पिताजी अपने बेटे,पोते-पोती के साथ है , उनकी छत्रछाया आज भी सर पर है ...."
ह्रदयस्पर्शी इस संघर्ष पूर्ण जीवन के बाद भी हमेशा अपने चेहरे पर एक मुस्कान लिए सर आज भी पर्दे के पीछे रहकर काम करने में विश्वास करते है । निरंतर उज्जैन के भविष्य को तराश रहें है । फेसबुक पर जैसे ही उनके जीवन संघर्ष की दास्तां देखी मेने तय कर लिया कि इसे आमजन तक लेकर जाऊंगा ताकि उन्हें प्रेरणा मिलें की सघर्षों की भट्टी से तपकर कैसे खरा सोना बना जाता है । सर को ह्रदय से मेरा सलाम...!
लेखक मिलिन्द्र त्रिपाठी
(हमारे उज्जैन जिले में यदि आपके संपर्क में ऐसे ही कोई शख्सियत हो जिसका जीवन सघर्षों से सफलता की ऊंचाई तक पहुंचा हो तो आप मेरे वाट्स एप नम्बर 9977383800 पर मुझे बता सकते है । )