मौत के कुएं आरडी गार्डी पर नेताओं के मौन से उज्जैन की जनता का फूटा गुस्सा, सोशल मीडिया पर विरोध का बिगुल बजा

कोरोना महामारी पर दिन ब दिन उज्जैन की हालत बिगड़ रही है । एक ओर जहां लोगो मे अब तक आरडी गार्डी की अव्यवस्थाओं पर ही गुस्सा था वही आरडी गार्डी के खिलाफ मुहं सिलकर बैठे उज्जैन के नेताओं पर भी लोगो का गुस्सा फूट चुका है । लोकतंत्र में जनता की आवाज ही सब कुछ होती है । उज्जैन के नेता यह समझ नही पा रहें है दिखावे की राजनीति से जनता त्रस्त हो चुकी है । सोशल मीडिया पर विरोध का बिगुल फूंकने वालों में नेताओं के अपने दल के पदाधिकारी भी शामिल है । यह नया दौर है जहां नेता के पीछे आंख मिच कर नही चला जाता है । यदि नेता गलत होता है तो उसकी लू भी उतार दी जाती है चाहे नेता कितने ही बड़े पद पर क्यों न हो । सोशल मीडिया के आ जाने के बाद जनता को मंच मिला है अपनी खुली भावना अभिव्यक्त करने का ओर जनता की आवाज को उठाना ही हमारा हमेशा से मकसद रहा है । अन्य जिलों के नेताओं से उज्जैन के नेताओं की तुलना की जा रही है सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है अन्य जिलों के नेता एक दिन में 50 हजार भोजन पैकेट अपनी जेब से बांट रहें है वही कोरोना में उज्जैन के नेता प्रशासन द्वारा या स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा जो वितरण किया जा रहा है वहां जाकर उनकी सामग्री के साथ फोटो खिंचवा रहें है ओर वीडियो बनाकर वाह-वाही लूटने में लगें है । आरडी गार्डी ओर महाडिक पर मुहं तक नही ख़ोल रहें उन्हें भय है कि मुहं ख़ोला तो आने वाले समय मे मिलने वाला मंत्री पद न चला जाये । आखिर जनता सब समझ रही है । उज्जैन में अपने आप को दबंग कहलाने वाले नेताओं के डरपोक व्यवहार को देखकर जनता उग्र हो चुकी है इसका उदाहरण है कि उनकी ही पार्टी के कार्यकर्ता अब खुलकर उनका विरोध कर रहे है । अब तक लगभग 173 संक्रमित ओर 35 की मौत के बाद आरडी गार्डी का विरोध बहुत तेज हो गया है डॉ महाडिक पर बड़ी कार्यवाही की मांग को अनसुना करना उज्जैन के नेताओं को भारी पड़ सकता है । जयंत राव गरुड़ फेसबुक पर लिखते है :-

"उज्जैन की इतनी भयावह ख़ौफ़नाक स्थिति होने के बाद भी सारे जनप्रतिनिधि मौन क्यों हैं ?

क्यों कोई भी स्वास्थ्य व्यवस्था की चिंता नही ले रहा है समझ से परे..!

हो सकता है फेसबुक पर मेरा इस प्रकार यह लिखना अनुशासन हिनता की श्रेणी में आये पर करू तो क्या करूँ बहुत रोका परन्तु नही रोक पाया अपने आप को.."

विजय चंद्रावल फेसबुक पर लिखते है कि :-

"उज्जैन में कोई मरता हे तो मरता रहे जनप्रतिनिधि का पेट भरना चाहिए कमिशन से यही सत्य है।"

दूसरी पोस्ट में लिखते है कि 

सीधी बात बताता हूं नेताओं से जुड़े लोगों को बुरी लगे तो लगे ।

(1) कैलाश विजयवर्गीय जी 1 से 1.50 लाख खाने के पैकेट रोज बाट रहे ।

(2)रमेश मेंदोला जी 50 से 70 हजार खाने के पैकट रोज बनवा के रोज बाट रहे।

(3) विश्वास सारंग जी 50 से 80 हजार सांझ चुला के नाम से अपनी विधानसभा में खाने के पैकेट बाट रहे है। 

(4)कांग्रेस विधायक  महेश परमार जी 20 से 30 हजार खाने के पैकेट रोज बाट रहे है । 

(5) कुणाल चौधरी जी अपनी विधानसभा में रोज खाने के पैकेट बाट रहे है। 

(6) उज्जैन की कम से कम 15 से 20 सामाजिक संस्थाएं एवं कुछ वार्ड में पार्षद हर गरीब को खाना वितरित कर रही है । 

उज्जैन के प्रतिनिधि प्रशासन के खाने के पैकेट जनता को बटवा रहे है ।। ये सत्य है बुरा लगे तो 10 बार लगे।

 गणेश बागड़ी (गज्जू पहलवान )

फेसबुक पर लिखते है कि :-

"अधिकारियो पर  वजन रख कर राहत सामग्री इकट्ठा कर रहे होंगे 

फिर खुद के फोटो खिंचवा कर बाटेगे"

राजपाल सिंह सिसोदिया फेसबुक पर लिखते है कि :-

40 साल के मुफ़्फ़र हुसैन कोरोना से जंग हार गये और 85 साल के डॉ. नरेंद्र खांडेराव महाडिक जीत गये,क्योंकि उनका भाई आरडी गार्डी में डॉक्टर है ??"

आकाश सारवान फेसबुक पर लिखते है कि :-

"प्रशासन पर लगाम जनप्रतिनिधियों को लगाना होता हैं।

अभी सब जनप्रतिनिधि व्यस्त हैं चहेतों को फ़्री का राशन दिलाने में, स्वास्थ्य उपकरणों के ठेके दिलाने में, आर्डी गार्डी से सेटिंग कराने में"

पीयूष चौहान फेसबुक पर लिखते है कि :-

"नगर की ज़िम्मेदारी लेने वाले अभी भी खानापूर्ति में ही लगे है, मेरे व्यक्ति का अस्पताल, मेरे व्यक्ति को खाने का ठेका, मेरे व्यक्ति को ppe किट का ठेका, मेरे व्यक्ति को फलाना, ढिमका, सब इसी में लगे है, इसका प्रतिसाद नगर को रेड ज़ोन बना कर दिया है, आगे देखो क्या क्या होता है...."

अभिषेक जैन फेसबुक पर लिखते है कि :-

उज्जैन(म.प्र.) में कोरोना से मरने वालों का प्रतिशत पूरे देश में सर्वाधिक 20% से भी अधिक है,ज़िला प्रशासन एवं जन प्रतिनिधि दोनो लापरवाह और विफल हैं। उज्जैन को केंद्र से तत्काल मदद की आवश्यकता है। @PMOIndia @narendramodi #saveujjain: उज्जैन की जनता मौत के मुँह पर खड़ी है।कोरोना से मरने वालों का प्रतिशत 20% है,और ठीक होने वाले मरीज़ों कि प्रतिशत 10%है।जनप्रतिनिधि एवं स्थानीय प्रशासन पूर्ण रूप से आँख मूँदे बैठा है।केंद्र ने तत्काल हस्तक्षेप नही करा तो दूसरा वुहान भारत में होगा "

एके निगम फेसबुक पर लिखते है कि :-

"भाई उज्जैन तो नेतृत्व हीन शहर हो गया, हे

सभी बाबा महाकाल के भरोसे चल रहा है

बाबा आप ही इन्हें समझाओ, चाहे वो तरीका कोई भी हो, जनता मरे व पिसे जा रहीं हैं इन्हें अपने पैसों के हिसाब से फुर्सत नहीं है"

दीपक पंवार फेसबुक पर लिखते है कि :-

"एक बार किंम जोंग जिन्दा है या मर गया जान सकते है पर RD gardi से कितने मरिज ठीक हुए नही जान सकते इसको बंद करवा के वांहा गो शाला खोल देनी चाहिए"

सौरभ नीमा फेसबुक पर लिखते है कि :-

"उज्जैन को बचना है तो आर डी गर्डी को बदलना पड़ेगा ना कोई व्यवस्था ना कुछ .. बेसिक चीज़े नहीं अलोट कर पा रहा है काहे का हॉस्पिटल"

राहुल सिंह तंवर फेसबुक पर लिखते है कि :- 

हैरानी की बात तो ये है कि कोई जनप्रतिनिधि भी RD गार्डी में हो रही मौतों के सिलसिले में मुख्यमंत्री जी से बात नही कर रहे है इस चकर में कही इनका मंत्री पद ना चला जाये ।।"

परिचय चौरसिया फेसबुक पर लिखते है कि :-

"उज्जेन शहर मे कोरोना के बाद "खोफ" का दुसरा नाम

आर डी गार्डी मेडीकल कॉलेज

संघर्ष ना हो ज्यादा..!

मोत का पक्का वादा..!!"

घनश्याम सक्सेना फेसबुक पर लिखते है कि :-

"4 करोड़ काई के लिए मिलना हैं। समझ नहीं आता है। जान बचाने के लिए की जान लेने के लिए। यहा तो मर अधिक रहे है। बचाने वाला तो। बंद हो मौत का खेल अब?"

दीपक धींग फेसबुक पर लिखते है कि:-

"सरकार की  मेडिकल काउंसिल मेडिकल कॉलेज ओर अस्पतालों को उसे चलाने का लाइंसेंस देती है पर इस शर्त के साथ की जब जरूरत होगी सरकार निशुल्क लेगी 

......तो फिर 4 करोड़ प्रति माह  जबकि  डाक्टर सब सरकारी ओर स्टाफ सब सरकारी लगा है ...

कुछ तो गड़बड़ हे ....दया"

राजीव सिंह भदौरिया फेसबुक पर लिखते है कि :-

"एक आध को छोड़ सब कमीशनबाजी में लगे हैं। न इनके पास कोई नीति है और न ही कोई नियम। कमीशनबाजी ने इनके विरोध करने की शक्ति भी छीन ली है।"

उमेश चौहान फेसबुक पर लिखते है कि :-

"कितना पेट भरेंगे यार, अब तो पेट भी फटने की कगार पर है फिर भी भरे जा रहे है, ऐसी कितनी भूख है यार इन नेताओं की "

पंडित अर्पित पुरोहित फेसबुक पर लिखते है कि :-

"100% सत्य

 उज्जैन के माननीयो सच्चाई आज शहरवासियों के सामने है। इतने बुरे वक्त में भी कमीशन खोरी में लिप्त है शहरवासियों की जान का कोई मलाल नही है।"

कमलेश जैन फेसबुक पर लिखते है कि :-

"पूरे देश मे मरने वालो का आंकड़ा उज्जैन में सबसे ज्यादा आ रहा है यह चिंता का विषय है आर्डि गार्डी के सारे बंगाली डॉक्टर अपनी सेवा दे रहे है जिनके खिलाफ कार्यवाही की जावे"

राजेश लश्करी 

फेसबुक पर लिखते है कि :-

"  इन ह**** को जूतो से घसीट घसीट कर मारना शुरू करना चाहिए इनके सारे संचालकों जो सेवा  नहीं मेवा   खाने में लगे हुए हैं । "

कुशल गुप्ता फेसबुक पर लिखते है कि :-

"क्यों ये नेता मुख्यमंत्री जी से ARGD 

को बन्द कराने के लिये बात नही कर रहे हे क्या करण हे ??????"

R.D. गार्डी हॉस्पिटल की अव्यवस्थाओं के कारण अपने पिता की मौत के बाद एक पुत्र के मन की वेदना वीडियो द्वारा जारी की  :-

"में रिदम चौधरी पिता का नाम मनोज चौधरी पता 54/4 जवाहर मार्ग 

पटनी बाज़ार उज्जैन मोबाइल नंबर 9425092037

में रिदम चौधरी कल शाम को मेरे पिताजी मनोज चौधरी का आकस्मिक निधन हो गया है । जिसकी सूचना हमें थाना महाकाल और आर डी गार्डी हॉस्पिटल द्वारा दी गयी । मेरे पिताजी का स्वास्थ्य 5 - 6 दिन से ठीक नही था तो पहले के दो दिन तो कुछ दवाई लेकर ठीक हो गये थे किंतु 3 दिन तक जब उनका स्वास्थ्य ठीक नही हुआ तो हमने कोरोना चेकिंग टीम को घर बुलाया उन्होंने चेक किया  और उनको ज्यादा ठीक लगा । ज्यादा खराब स्थिति नही थी फिर अगले दिन माधव नगर में ट्रीटमेंट के लिए ले गए क्योंकि उन्हें आराम नही था फिर वहाँ से उन्हें R D gardi रेफर कर दिया तो उन्हें हमने यह एडमिट करवा दिया । में स्वयं यहाँ पर उनको लेकर आया था तो उनको ऊपर ले जाने के लिए स्टाफ को बोलने पर भी वे 20 min तक स्ट्रेचर नही लाये थे फिर चिल्ला चोट करने के बाद वह स्ट्रेचर लाए । 3 दिन तक उनसे हमारा कोई सम्पर्क नही था पर 1 पहचान वाले व्यक्ति ने पुष्टि करी थी कि उनका स्वस्थ ठीक है और रिपोर्ट आने तक इंतज़ार करेगी उपचार करने का । इसका सीधा मतलब ये है कि अगर रिपोर्ट पॉजिटिव आएगी तभी इलाज होगा वरना ये मरीज़ का मरने का इंतज़ार करेगे ।। ओर इसी लापरवाही का मेरे पिताजी शिकार हुए है।। रिपोर्ट भी 3 दिन में आती है तो आज एडमिट करे को 4 दिन हो चुके है उसके बाद भी बोल रहे है कि रिपोर्ट कल आएगी ।। हमारा पूरा परिवार पूरी तरह से बिखर गया है हम चाहते है की उज्जैन का ठंडा प्रशासन जल्द से जल्द इसका निराकरण करे वरना अस्पताल को मौत का घाट बनने में समय नही लगेगा ये लापरवाही यही नही रुकती में अपने पिताजी का मृत शरीर जब लेने हॉस्पिटल आया तो में 7 बजे यहां आ गया था उसके बाद ये बोले जा रहे थे कि बस डॉक्टर आ रहे है उनको मालूम है पहले 8 बजे बोलै फिर 8,30 का बोला ओर ऐसे करते करते डॉक्टर 9 बजे आये ।"

(उक्त लेख में वर्तनी त्रुटि हो सकती है इसमें जनता के फेसबुक पोस्ट पर किये गए विचारों को वास्तविक स्वरूप में ही लिया गया है । लेख में प्रयुक्त सभी जानकारी आमजन के सोशल मीडिया से ली गयी है । )


लेखन एवं संकलन मिलिन्द्र त्रिपाठी