क्यों न राजनैतिक दलों के पार्टी फंड से पैदल सफर करते मजदूरों के लिए बसों की व्यवस्था की जाए 

घर कितना सुखद होता है उस मजदूर से पूछा जाए जो सैकड़ो किलोमीटर की पैदल यात्रा करके अपने गांव को लौट रहा है । जी हाँ शहर छोड़कर अपने गांव की ओर । क्योंकि उन्हें भरोसा है गांव भूखा नहीं मरने देगा, न भूखा सोने देगा ,गांव में रोजगार के साधन भले ही कम हो,लेकिन भुखमरी नहीं है,लाख विपदाओं के बाद भी गांव में भूख से शायद ही कोई मरता हो। क्योकि वहां इंसानियत अभी जिंदा है । वहां व्यक्ति एक दुसरे का दर्द बांट लेता है । शहर के बड़े-बड़े अमीर मालिक इन मजदूरों को केवल 60 दिन बैठाकर नही खिला पाए । इन्ही मजदूरों के दम पर सालों से बैठकर खाने वाले अमीर सेठों ने इन्हें सड़को पर लावारिस छोड़ दिया । सोचा कि जिंदा बच जायेगे तो बेरोजगारी के चलते कही से भी वापस आ जायेंगे । मर भी गए तो क्या इनके जैसे और आ जायेंगे । आखिर देश मे गरीबो की कमी थोड़ी है । शराब की दुकान खोलने की अनुमति दे दी गयी, सड़को पर ठेला लगाकर कमाने वाले ,फेरी वाले ,चाय की दुकान वाले ,छोटे दुकानदार कोरोना फैला देंगे लेकिन शराब की दुकान से कोरोना नही फैलेगा...? शराब की होम डिलेवरी कैसे की जाए इस पर मंथन चल रहा है लेकिन भूखों तक खाना कैसे भेजा जाए इस ओर कोई चिंतन मनन नही । ये जो राजनैतिक दल होते है न ये चाहे तो इनके लिए कुछ भी असंभव नही पता है क्यो...? क्योकि जहां आज तक बिजलीं नही पहुंची हो,जहां आज तक मोबाइल न पहुंचा हो ,जहां आज तक रेल नही पहुंची हो , उन सब जगह पर भी इन राजनैतिक दलों के मण्डल अध्यक्ष ,मण्डल की टीम ,बूथ अध्यक्ष ,सेक्टर प्रभारी ,सेक्टर इंचार्ज ,ओर भी न जाने कौन-कौन से पद वालो की बड़ी फ़ौज है । सबसे बड़ी बात इन पार्टियों के पास हजारों करोड़ो रुपये का फंड रखा हुआ है । ये फंड आज बुरे वक्त में देश के काम आ सकता है लेकिन न तो देश की जनता ये मांग कर रही है । न देश का मीडीया इस पर डिबेट कर रहा है । यदि पार्टियां चाहे तो अपने राज्य इकाइयों को फंड जारी करें उन्हें कहे कि आपके राज्य में कोई मजदूर पैदल न जाये उसके लिए बस की व्यवस्था की जाए । चुकी नेता नगरी के ये लोग बसों की परमिशन भी आराम से करा लेंगे । इसमें कई तो इतने आगे है कि फ्री में बसों की व्यवस्था भी बस मालिक पर छप्पर रखकर करने में माहिर है । केवल इनके जैसे परम ज्ञानी लोगो के ज्ञान का उपयोग करने की देरी है । अच्छा ऐसे नही समझ पा रहें हो तो में एक उदाहरण से समझाता हूँ । भोपाल देश की राजधानी है वहाँ जब कोई पार्टी का अध्यक्ष या बड़े पद का नेता यदि बड़ी सभा करना चाहता है तो हर जिले से 100 बस का टारगेट दिया जाता है । यह सारी व्यवस्था फ्री की जाती है । इसमें आने वालों को खाना भी दिया जाता है पानी भी दिया जाता है और कई बार तो 1000 रु भी दिए जाते है । तो क्यो न इन नेताओं के अनुभव को काम मे लिया जाए सभी बड़े दल के अध्यक्ष इन्हें फंड जारी कर इनकी टीम का सदुपयोग कर सकते है । क्या जरूरी है कि हर काम सरकार ही करें ये राजनैतिक दल कब काम आएंगे...? क्या केवल टेक्स का पैसा ही देश का है...? क्या पार्टियों को दिया गया फंड देश के नागरिकों का नही...? तो क्यो न इस फंड का उपयोग किया जाए...? आखिर कभी तो राजनैतिक दल भी देश के काम आए...? क्या ये लोग केवल आरोप-प्रत्यारोप लगाने के लिए बने है...? यदि संकट के समय भी ये लोग काम नही आ सकते तो फिर ये कब काम आएंगे...? फिर क्यो देश की जनता इनके चक्कर मे आपस मे लड़ती है...? यदि इस समय भी यह दल केवल बकवास भाषण पिला कर काम चला रहे है तो इन्हें आईना दिखाने का वक्त आ गया है । 

 

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लेखक मिलिन्द्र त्रिपाठी