औद्योगिक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के अब युद्धक प्रयास
विश्वव्यापी महामारी कोरोना कोविड 19 के चलते देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के अब युद्धक प्रयास करने होंगे साथ जब तक कोरोना का वैक्सीन नही बन जाता तब तक हमे इसके साथ ही जीना होगा 

उद्योग को प्रारम्भ करना आवयस्यक है !

उद्योगों को  प्रारंभ करने के लिए बस जरूरक्त है कुछ उपायों की वस्तुतः जिलो के मुख्य उद्योग एवं इसके अतिरिक्त अन्य छोटी-छोटी जगहों पर भी कार्य होता है जिन  औद्योगिक इकाइयां को चालू करना हैं पहले इन्हें शुरू करने के लिए जो तुलनात्मक अध्ययन किया जावे कंटेटमेंट एरिया के पास के उद्योगों को अभी ना खोला जावे आवश्यक वस्तुओं के अलावा अन्य जरूर के उद्योगों पर ध्यान दिया जावे ! कुछ इस तरह के उपाय किये जा सकते है !

 

(1) औद्योगिक क्षेत्र तथा उनके आस-पास आने वाले श्रमिकों की बस्तियां जो संक्रमण से पूर्णता मुक्त है इसलिए ,वह उद्योग जिनके मालिक अथवा उनमें काम करने वाले श्रमिक संक्रमित प्रतिबंधित क्षेत्रों से आते हैं, ऐसे उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों को कोविड-19 संबंधित गाइड लाइन का पालन करते हुए उत्पादन करने के लिए अनुमति देनी चाहिए l

(2) सभी का मुख्य उद्देश्य संक्रमण को रोकना है जिसमें सभी उद्यमी पूर्णत: शासन की मदद करे साथ ही वे अपने मुख्य उद्देश्य संक्रमण को रोकने  के साथ जिन फैक्ट्रियों में श्रमिक निवासरत हैं ऐसी फैक्ट्रियों में तुरन्त उत्पादन प्रारम्भ किया जावे उन्हें रोकने का कोई औचित्य नजर नहीं आता क्योंकि वे सभी फैक्ट्री में एक साथ ही है,बंद है तो सिर्फ उत्पादन अतः ऐसी सभी फैक्ट्रियों को तत्काल प्रभाव से अनुमति देनी चाहिए।

(3) शासन से अपेक्षा है कि औद्योगिक क्षेत्रों में एक अथवा दो मार्ग को छोड़कर प्रवेश के सभी रास्ते बंद कर दिए जाएं जिससे कि अनावश्यक प्रवेश इन क्षेत्रों में बंद हो तथा संक्रमण की रोकथाम में सहायता मिले l

(4) जिन रास्तों से प्रवेश अथवा निर्गम दिया जा रहा है , ऐसे रास्तों पर सैनिटाइजेशन की व्यवस्था की जाए , साथ ही शासन द्वारा  डिजिटल थर्मामीटर से  टेंपरेचर जांच लेना इत्यादि अन्य जो कार्य हैं वह किया जाए जिससे कि औद्योगिक क्षेत्र में आने वाला हर व्यक्ति चाहे वह मालिक हो या श्रमिक सैनिटाइज होकर ही औद्योगिक क्षेत्र में प्रवेश करें।

(5) वाहनों की जैसे ट्रक आईसर इत्यादि तथा कारों की समस्या आ सकती है तो अगर वह स्वयं अपनी व्यवस्था से सैनिटाइज होकर प्रवेश करते हैं तो बेहतर है अन्यथा उनके लिए भी एक अलग मार्ग पर व्यवस्था की जा सकती है।

(6) उद्योगों को अनुमति के लिए शासन कि यह शर्त है कि , फैक्ट्री मे ही श्रमिकों की रहने की और खाने की व्यवस्था करना पड़ेगी,जो सम्भव नही है  इसमे श्रमिकों की तरफ से ऐसी बाते आ रही हैं :-

  (1) कई कर्मचारी बोले कि अगर 8-10 दिन बाद हम घर जाएंगे तो आस-पास वाले सब घबरा जाएंगे कि इसे अस्पताल ले गए होंगे और रहना मुश्किल कर देंगे l

 (2) दिक्कत : मैं तो राजी हूं काम पर आने को लेकिन घर वाले नहीं मान रहे l

 (3) खाना अगर बाहर से आएगा तो पता नहीं किसके हाथ लगे होंगे उसको कहीं कोरोना हुआ तो ?

(4) इन सबसे बढ़कर सबसे प्रैक्टिकल समस्या तो यह है कि कार्य के दौरान जब तक फैक्ट्री चालू रहती है तब तक तो श्रमिक ,  सुपरवाइजर और मालिक की निगरानी में रहते हैं , लेकिन पाली समाप्त होने के बाद सभी की सोशल गैदरिंग शुरू हो जाती है तथा सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ जाती है l

इस तरह उन्हें वहां पर कंट्रोल करके रखना और उद्योग चलाना संभव ही नहीं है ,  क्योंकि

(1) उनके रहने और खाने का खर्च।

(2) सैनिटाइजेशन एवं मासिक अन्य खर्च।

(3) 30% से लेकर 50% तक उत्पादन।

 इन सब परिस्थितियों के मद्देनजर उद्योग चलाना नामुमकिन है। क्योंकि पटरी ही नहीं बैठती है

अनुमति पत्र में अनिवार्य इन्सुरेंस के लिए कहा गया है किन्तु यह स्पष्ट नहीं किया है कि जिसके पास ESIC है उसको भी लेना है या केवल बिना ESIC वालों को और साथ ही कितने दिनों तक के लिए लेना है | इसमें हमारा स्पष्ट मत है की जो इकाई ESIC में रजिस्टर्ड है उसे किसी प्रकार के इन्सुरेंस की आवश्यकता नहीं है और जो इकाई रजिस्टर्ड नहीं है उसे एक सीमित समय के लिए इन्सुरेंस लेने के लिए कहा जाय |

(7) उद्योगों को चलाना एक निरंतर प्रक्रिया है जिसमें की ब्रेकडाउन आना स्वाभाविक है ऐसी परिस्थिति में उत्पादन पूर्णता बंद हो जाता है ऐसी दुकानें जो कि औद्योगिक मशीनरी,इलेक्ट्रॉनिक सामान इत्यादि का विक्रय करती हैं ऐसी दुकानों को आवश्यकता होने पर फोन के द्वारा सूचित करके उद्यमी को सामान उपलब्ध हो जाए ऐसी कुछ व्यवस्था बनाना चाहिए जिससे कि उत्पादन प्रभावित ना हो ।

 कच्चा माल प्राप्त करने के लिए :-

(1) ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन से बात करके पार्ट लोड में फैक्ट्री से माल उठाने की व्यवस्था हेतु समन्वय करना होगा इसके लिए अगर हो सके तो उन्हें औद्योगिक क्षेत्र में ही कोई स्थान उपलब्ध करवाया जा सकता है अगर शासन चाहे तो यह कार्य औद्योगिक संगठन एवं ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन आपसी समन्वय से कर सकते हैं ।

(2) उद्यमी  की यह अपेक्षा  है कि जिनके व्यापार मध्यप्रदेश में जिले के बाहर ,  ग्रीन एवं ऑरेंज  जोन  (जिला)  मैं भी होते हैं उनको  उद्योग में पड़ा तैयार माल बाहर भेजने के लिए कुछ मजदूरों की छूट देकर रोजाना 2 घंटे के लिए उद्योग खोलने की छूट देना चाहिए ताकी वे अपना बना हुआ माल बाहर भेज सकें गंभीर आर्थिक नुकसान नहीं हो ।

(3) कई उद्योग मे माल खाली करने, भरने के लिए हमाल आते रहते हैं, शासन ने बहुत कम श्रमिक से काम कराने को कहा हैं, अब ना तो हम्माल हैं और श्रमिक भी कम, ऐसे मे 20 टन 25 टन 30 टन की गाड़ी खाली करना-भरना ही बहुत मुश्किल हो गया हैं ऐसे हम्मालो को (जो कि कंटोनमेंट जोन से नहीं आते हैं ) अनुमति दी जानी चाहिए ।

यह सर्वविदित है कि एमएसएमई इस वक्त गंभीर आर्थिक संकट के दौर में गुजर रही है इसके लिए उद्योगों को निम्न सहयोग चाहिए :-

राज्य शासन से -

(1) उद्योगों को दी जाने वाली सब्सिडी जो लंबित है उनका तत्काल भुगतान किया जाए l

(2) उद्योगों का राज्य शासन पर जो भी माल सप्लाई के बिल का बकाया है उसका तत्काल भुगतान किया जाए l

(3) जो भी विवादित विषय हैं करो से संबंधित अथवा अन्य कोई उनके लिए कोई समाधान योजना तत्काल घोषित की जाए तथा ऐसे बकाया के लिए इस समय अनावश्यक दबाव ना बनाया जाए l

(4) विद्युत बिल में जितना उपयोग उतना ही बिल इस मंत्र पर कार्य करना होगा क्योंकि बंद उद्योग यह भार उठाने में सक्षम नहीं है सभी फिक्स चार्ज ,TMM एवं अन्य पेनाल्टी समाप्त की जाए l

(5) डी आई सी एवं एकेबीएन की जमीन की लीज रेंट एवं मेंटेनेंस चार्ज में छूट (rebate) दी जाए साथ ही भरने में देरी होने पर लगने वाली  पेनल्टी और ब्याज से  पूर्ण रूप से मुक्ति दी जाए और यदि हो सके तो उस पर बैंकों को लोन देने के लिए भी आग्रह किया जाए ताकि वर्किंग कैपिटल की आवश्यकता पूरी की जा सके।

(6) MSI लम्बे समय तक कर्मचारियों की सैलरी देने में सक्षम नहीं है (एक दो सप्ताह की बात होती तो जैसे-तैसे प्रयास करते) | कोई भी MSI पूरी सैलरी देकर अपने कर्मचारियों को संतुष्ट नहीं कर पायेगा, ऐसी स्थिति में कर्मचारियों के साथ विवाद होगा और इससे इकाई भी बंद होगी और कर्मचारी वह भी बेरोजगार होंगें, अतः सैलरी देने न देने के सम्बन्ध में उद्यमी के ऊपर किसी भी तरह का शासकीय दबाव न डाला जाय और न ही श्रम विभाग की ओर से किसी तरह का नोटिस ही भेजा जाय | इस विषय को दोनों के बीच सरलीकरन होना चाहिए।

(7) लॉक डाउन के पश्चात् नियमों के पालन को लेकर एक निरीक्षण की टीम शासन द्वारा बनाई गयी है ऐसा हमें ग्वालियर इकाई से पता चला है | इस टीम में उद्योग संगठनों को भी शामिल किया जाय एवं निरीक्षण के दौरान यदि उद्योग में कोई कमी पायी जाती है तो पहली गलती पर उद्यमी को समझाइस देकर छोड़ा जाय और दूसरी बार गलती पाए जाने पर न्यूनतम आर्थिक दण्ड निरूपित किया जाय | क्योंकि हमारा उद्देश्य संक्रमण को रोकना होना चाहिए ना की उत्पादन में किसी भी तरह की बाधा उत्पन्न करना।

केंद्र सरकार से सहायता :- 

(1) जिन वस्तुओं का उत्पादन या सेवाओं का उत्पादन हमारे देश में हो रहा है उनका इंपोर्ट पूरी तरह से रोक दिया जाना चाहिए ताकि देश के उत्पाद यहीं पर खत्म किए जा सकें और हमारी फॉरेन करेंसी को बचाया जा सके l

(2) रिजर्व बैंक ने जो बैंकों को निर्देश दिए हैं वह मात्र 10% वर्किंग कैपिटल में इजाफा करने के दिए हैं जो कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए नाकाफी हैं l यह 10% भी वर्तमान में बढ़े हुए खर्चों को देखते हुए उसी में लग जाएगा क्योंकि तुरंत आमदनी होना  असंभव दिख रहा है अतः कम से कम 50 से 60% की वर्किंग कैपिटल सीसी लिमिट में वृद्धि के निर्देश देना आवश्यक है तभी उद्योग एवं व्यापार पटरी पर आ सकेगा l अगर इस पर तत्काल प्रभाव से अमल नहीं किया गया तो जो इंडस्ट्री तकलीफ में है वह आगे एनपीए होने की पूरी-पूरी संभावना है l

(3) क्रेडिट रेटिंग के नॉर्म्स में जो 30 जून तक की छूट दी गई है उसे इस पूरे वित्तीय वर्ष के लिए बढ़ाना आवश्यक है क्योंकि वैश्विक स्थिति अत्यंत खराब है कई क्षेत्र रेड जोन में है जो इंडस्ट्री ग्रीन जोन में है उनका व्यापार अगर रेड जोन में है तो भी व्यापार बंद होना ही है इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखकर क्रेडिट रेटिंग सीएमआर इत्यादि मैं आवश्यक बदलाव करना जरूरी है अन्यथा बैंक किसी को लोन ही नहीं देगी।

( केंद्र सरकार और राज्य सरकार का फोकस इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट पर है और यदि ऐसा होता है तो जो बड़े प्रोजेक्ट है उसमें भी छोटे-छोटे लघु उद्यमियों या लघु ठेकेदारों को जोड़ा जाए और उन्हें रियायत के साथ जोड़ा जाए ताकि जो सिक्योरिटी डिपॉजिट है या अन्य जो दूसरी रियायत हैं उसमें छूट दी जाए तो इससे सरकारी पैसा सीधे ठेकेदार के माध्यम से लेबर , सुपरवाइजर और पूरी चेन में जाएगा । इन प्रोजेक्ट को पर्यावरण स्वीकृति में भी राहत प्रदान करने की आवश्यकता है।

(5) लॉक डाउन खुलने के बाद पिछले तीन माह की रुकी हुयी किस्तें एवं व्याज भरने में उद्यमी सक्षम नहीं है, अतः लॉक डाउन की अवधि का सारा बैंक ब्याज केंद्र सरकार माफ़ करे या राज्य सरकार उद्यमी को अनुदान के रूप में दे |

लघु उद्योगों में काम करने वाला बड़ा श्रमिक वर्ग ऐसा है जो कि आस-पास की बस्तियों में ही रहता है एवं पैदल अथवा साइकिल से अपने कार्य  स्थल पर जाता है ऐसे श्रमिकों को फैक्ट्री आने-जाने में परेशानी खड़ी नहीं हो ऐसा प्रबंध शासन से चाहते हैं ।

एमएसएमई मैं कर्मचारी का आवागमन के लिए एक सामान्य गाइड लाइन जो केंद्र सरकार द्वारा  कारों एवं टू व्हीलर के संदर्भ में जारी की गई है वह पर्याप्त तथा जिन बड़ी फैक्ट्रियों में कर्मचारी बसों से आते-जाते हैं उनके लिए बसों के लिए जो गाइड लाइन है उसका पालन होना चाहिए।

एमएसएमई के लिए व्यापार चक्र पूर्ण तरह तबाह हो चुका है इस को पुनः स्थापित करने के लिए उपरोक्त बैंकिंग संबंधी सुझाव दिए गए हैं एवं हितग्राहियों के लिए एक समग्र नीति बनाना आवश्यक है क्योंकि अभी शुरू हुए उद्योगों एवं व्यापार के लिए कम से कम 1 वर्ष के लिए सुरक्षा देना अति आवश्यक है अन्यथा जिस तरह छोटे पौधे सूख जाते हैं इस संकट में वह भी बंद हो जाएंगे इसके लिए उन्हें पुनः भुगतान में कम से कम 1 वर्ष के लिए छूट देना अत्यंत आवश्यक है ।

उपरोक्त समस्याओं का निराकरण होने पर होने पर हम अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकते हैं साथ ही कोरोना को भी मात दे सकते हैं उद्योगों को सुचारू रूप से चलाने के लिए दिए गए सुझाव पर आवश्यक कार्यवाही होगी , इसमें जो भी प्रैक्टिकल सहयोग होगा वह उद्यमी पूर्ण रूप से करेंगा !

लेखक - धर्मेश जोहर (डी. के.)