अमीर जिनकी बदौलत जीवनभर बैठकर खाते है उन गरीब मजदूरों को 2 महीने बैठाकर नही खिला पाए

एक अनुमान के मुताबिक देश मे 8 करोड़ से अधिक प्रवासी मजदूर है । कोरोना महामारी के कारण जारी लॉक डाउन का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत के गरीब और मजदूर वर्ग पर पड़ा है। पिछले दिनों जिस तरह से देश भर में मजदूर पलायन करते देखे गये वो इस देश की जमीनी हकीकत को दर्शाता है।लॉकडाउन के कारण मजदूर वर्ग भूखा और पैदल अपने घरों को चल पड़ा था। जिसका खामियाजा कई मजदूरों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। पिछले दिनों कई मजदूरों की पैदल चलने और लगातार भूखे प्यासे रहने से मौत हो गई थी।कोरोना वायरस उन मजदूरों के लिए काल बनकर आया है जो बेचारे किसी तरह मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे । आय के स्रोत समाप्त हो जाने के कारण घर जाने को मजबूर ये श्रमिक पैदल चलकर घरों की ओर जा रहे हैं. रास्ते में अगर बैलगाड़ी, ट्रक या बस जैसी कोई भी सवारी मिलती है तो वे उसका सहारा ले रहे हैं । ट्रक ड्राइवर इन्हें बीच रास्तों में छोड़कर भी भाग रहें है पैसा भी ज्यादा ले रहे है । मजबूर मजदूर कुछ न मिलने पर पैदल घर की ओर जा रहें है । कल्पना कीजिये तपती गर्मी में सैकड़ों किमी का पैदल सफर ताकि अपने घर पहुंच जाए । जहां एक एक कदम चलना मुश्किल है लेकिन जान बचाने को मजबूर ये मजदूर करें भी तो क्या करें । वातानुकूलित कमरों में बैठकर इन पर राय देना बड़ा आसान है लेकिन इनकी जगह खुद को रखकर सोचिये तब इनका दर्द आपको महसूस होगा । कोरोना महामारी के इस दौर में हर व्यक्ति परेशान है । जीवन के सारे लक्ष्य एक तरफ रखकर व्यक्ति का एक ही लक्ष्य है कैसे जीवन को बचाया जाए । कुछ लोगो ने इस दौर में भी अपने जमा पैसों से गरीबों की सेवा की मिसाल पेश कर यह सन्देश दिया कि इंसानियत आज भी जिंदा है । अनेक लोग रोज भूखों को खाना खिला रहें है । उज्जैन,इंदौर सहित देश-प्रदेश में भी सभी मंदिर सभी धार्मिक समाजिक संस्था रोज अनेकों बेसहारा लोगो को भोजन एवं सूखा राशन उपलब्ध करा रही है । सच भी है हम हर काम को सरकार के भरोसे तो नही छोड़ सकते...? सरकार जो करती है उसके अपने नियम कायदे है उसकी सुविधा सही व्यक्ति तक पहुंचे इसकी सरकार भी चिंता करती है लेकिन गरीबो के हक पर डाका डालने वाले बहुत लोग इसी समाज मे मौजूद है । इस कारण यह सुविधा असली हकदार तक नही पहुंच पाती । लेकिन इस दौर ने एक सच्चाई सामने लाकर खड़ी कर दी । जो अमीर सेठ है । जिनकी अनेकों पीढियां आज तक अगर बैठकर खा रही है तो उसका कारण है गरीब मजदूरों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी की जा रही मेहनत । आज यदि अमीर बैठकर खा रहे है तो वो गरीबों की मेहनत का ही फल है । कारखाने चलते है क्योकि मजदूरों का पीसना वहां बहता है । मजदूरों के खून पसीने की कमाई से ही अमीर सेठ महंगी कारों में घूमते है लेकिन इनका दिल बहुत छोटा होता है । कोरोना महामारी ने इसे एक बार फिर उजागर कर दिया । अमीर सेठों ने गरीब मजदूरों को 2 महीने न तो वेतन दिया न भोजन दिया । उल्टा कहाँ की जब मेहनत ही नही की तो मेहनताना कैसा । फिर भूख से बेहाल मजदूर के पास एक ही रास्ता था अपने गांव जाना क्योकि उसे मालूम था शहर में वो भूखा रह सकता है । लेकिन गांव में वो भूखा नही रहेगा । गांव रोजगार न दे लेकिन खाने का अन्न गांव जरूर देगा । जिन अमीर सेठों के लिए जिंदगी भर तपती मशीनों में खुद को झोंका उन्ही अमीर सेठों ने 2 महीने मजदूरों की चिंता करने से मना कर दिया । मजबूर होकर मजदूर पलायन करके गांवों की ओर लौट आये सेठों को पता है जब सब सामान्य हो जाएगा तो नौकरी धंधे की तलाश में इनको वापस यहां आना ही होगा ओर ये न भी आये तो बेरोजगारी बहुत है कोई दूसरा गरीब मिल ही जायेगा । जो खुद के शरीर को मशीनों में झोंक कर पैसा कमाकर मुझे देगा । 

 

(उक्त लेख के किसी भी हिस्से को लेखक की सहमति के बिना कॉपी करना गैरकानूनी है ,कॉपी करने पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी )

 

लेखक मिलिन्द्र त्रिपाठी