वैसे तो हमारे देश मे ऐसे अनेक निजि मेडिकल कॉलेज है जिनका नाम आते ही आम आदमी की रूह कांप जाती है । ये मेडिकल कॉलेज जहां एक ओर शासन से पूरा फायदा लेते है लेकिन दूसरी ओर जनता को भी नोचने से पीछे नही हटते है । इनकी बिल्डिंग जितनी बड़ी होती है दिल उतना ही छोटा होता है । यदि आम व्यक्ति सड़क से गुजर रहा हो और उसके सामने कोई व्यक्ति गाड़ी से गिर जाता है तो वो मदद में तुरन्त रुक कर हाथ बढ़ाता है । लेकिन उज्जैन का यह मेडिकल कॉलेज जिसके गेट पर तड़प-तड़प कर एक महिला ने जान दे दी लेकिन इन लोगो ने 3 चाबी होने के बाद भी जानबूझकर ताला नही ख़ोला । इस मेडिकल कॉलेज का नाम है आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज यह उज्जैन के आगर रोड़ पर स्थित है । जहां पर मेडिकल कॉलेज के साथ-साथ विशाल चिकित्सालय भी है और एक समय मे हजारों डॉक्टर यहां मौजूद रहते है । फिर भी इनकी चौखट पर एक महिला 20 मिनट तक तड़पती रही लेकिन इन्होंने उसे उपचार नही दिया गया । जबकि महिला को यहां कलेक्टर के आदेश पर ट्रांसफर किया गया था लेकिन यहां के डीन डॉ महाडिक ने कलेक्टर के आदेश के बावजूद किसी जिम्मेदार कर्मचारी को यह आदेश नही दिया कि एक एंबुलेंस आ रही है तुम गेट से उन्हे लेकर नियत स्थान तक पहुंचा देना । आज यह डीन बहाने बना रहा है कि गेट से कोई कोरोना मरीज न भाग जाए इस लिए ताला लगा रखा था तो क्या कोई सिक्योरिटी गार्ड नही था जो आने वाले मरीजों को बता देता की आप अस्पताल में इस वार्ड में जाये वहां आपका उपचार होगा । 20 मिनट तक ताला तोड़ने के प्रयास के बीच एक बार भी डीन महाडिक नीचे देखने तक नही आया ।
55 वर्षीय महिला लक्ष्मी बाई तड़प-तड़प कर सांस लेने को मोहताज हो गयी लेकिन आरडी गार्डी को दया तक नही आई ।55 वर्षीय लक्ष्मी बाई को सांस लेने में तकलीफ और ब्लड प्रेशर बढ़ा होने के कारण पहले परिवार वाले माधव नगर अस्पताल लेकर गए जहां पर महिला को भर्ती कर लिया गया,यहां देर रात में करोना संक्रमण का संदेह होने पर कल सुबह कलेक्टर के आदेश पर लक्ष्मी बाई को आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया ।आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने कलेक्टर के आदेश के बाद भी मरीज को अस्पताल में भर्ती करना तो दूर आइसोलेशन वार्ड का ताला तक नहीं खोला यहां तक कि एम्बुलेंस के पास कोई स्टाफ का व्यक्ति तक नही आया । कॉलेज प्रशासन ने पहले तो परमिशन दे दी और जब परिजन मरीज को लेकर पहुंचे तो उसे अंदर नहीं लिया। तर्क दिया कि यहां पर कोरोना संक्रमित पॉजिटिव मरीज है, उनके साथ में निगेटिव मरीज को कैसे ले सकते हैं। परमिशन देते समय डीन का दिमाग कहाँ था जब उसने यह क्यो नही सोचा ? साथ यह बेतुका तर्क भी दिया गया कि माधवनगर अस्पताल से महिला को बगैर वेंटिलेटर के भेज दिया। यही नहीं गेट की तीन चाबी अस्पताल के अधिकारियों के पास थी, लेकिन चाबी नहीं मिलने, कर्मचारी के उपलब्ध नहीं होने का बहाना बनाकर ताला नहीं खोला। जबकि अभी इमरजेंसी हालत में यह हाल है तो बाकी समय यह मेडिकल कॉलेज का भगवान ही मालिक है । यही नही कोरोना के संक्रमित मरीज जो इस अस्पताल में है उनको भी यहां अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है । उन्हें भोजन तक गेट पर रख कर दिया जाता है और दिनभर कोई उनकी देख-रेख तक करने नही आता । यह मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस के छात्रों के एडमिशन के समय छात्रों से लाखों रुपये का डोनेशन खिंचते है । इस मेडिकल कॉलेज का डीन भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के साथ पार्टनरशिप में है । इस लिए वो किसी अन्य अधिकारी और नेता की बिल्कुल नही सुनता । कोई मर भी जाये तो इनके लिए यह सामान्य घटनाक्रम है । इनके ऊपर अनेकों जांच होती है लेकिन सबसे यह पैसों के दम पर बच जाते है । यदि जल्द इस डीन और कॉलेज पर सख्त कार्यवाही नही की गई तो अपने अखबार के माध्यम से हम इस कॉलेज के खिलाफ अभियान चलाएंगे ।
हमेशा से बदनाम ही रहा है यह कॉलेज :-
अभी हाल ही के वर्षों में कॉलेज की पीजी की छात्राओं ने ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. रूपम जैन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। डॉ. जैन को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है। लेकिन उस समय कॉलेज प्रबंधन ने इस मामले को दबाने का बहुत प्रयास किया था ।
लेखन एवं संकलन मिलिन्द्र त्रिपाठी