प्रार्थना" ...- डॉ.एन.के.त्रिवेदी, पूर्व सी.एम.एच. ओ.,सिविल हॉस्पिटल उज्जैन

"धार्मिक" पूजा स्थलों पर हम सभी या तो रोज या कभी-कभी प्रार्थना करने के लीए जाते हैं और कई लोग जाते ही नहीं।जो नहीं जाते कोई अन्तर नहीं आया उनके लिए।जो जाते हैं, उन सभी की प्रार्थना का स्वरुप अलग-अलग होता है, धार्मिक रीति रिवाजों के अनुरुप प्रार्थना होती है।परन्तु यह नहीं माना जा सकता या सोचा जा सकता है,कोई यह प्रार्थना करे कि मेरे धर्म का उत्थान हो और शेष सभी धर्मों के अनुयाइयों का पतन हो।यह सोच केवल एक मानसिक कुत्सित विचार हो सकता है।अब सभी "जाति समुदायों" के"भगवानों" ने मानव समाज के लिये प्रार्थना स्थलों पर ताले डाल दिये हैं।अब "प्रार्थना" जो कि केवल परिवार की वृद्धि समृद्धि या स्वयं के कष्ट निवारण और स्वार्थवश की जाती थी उसका शायद अब "भाव" स्वरूप बदल गया है।अब हम सामूहिक रुप से पुरे देश में शाम 5 बजे घंटी, शंख, ताली या थाली बजाते हैं ,या फिर,
रात 9 बजे दीपक जलाते हैं,यह सब एक प्रार्थना का स्वरुप है।ऐसी प्रार्थना अब स्वयं अथवा परिवार के लिये नहीं अपितु देश के लिये, देश के एक-एक व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य की कामना और अपना जीवन दांव पर लगाकर हमारे स्वास्थ्य की रक्षा में जुटे योद्धाओं के लिए की जाती है।यही "एकात्मक भावना" हम सब को हमारे देश को  इस भयावह स्थिति से लड़ने में और निकालने में सफल रहेगी ।


लेखक - डॉ.एन.के.त्रिवेदी,


पूर्व सी.एम.एच. ओ.,सिविल हॉस्पिटल उज्जैन