मकान-दुकान किराया माफ करो , बिजली बिल हाफ करो, संकट में मध्यमवर्गीय परिवार

देश इस वक्त कोरोना के संकट से जूझ रहा है। वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ा दिया है।कोरोना संकट के इस दौर में जहां एक ओर आमजन घर पर है । लेकिन उसके खर्चो में से सबसे बड़े खर्चे के दो मीटर चालू है एक मकान  व दुकान का किराया एवं एक बिजली का बिल । चुकी गर्मी का मौसम आ गया है बिजली का उपयोग घर मे रहने के कारण अधिक हो रहा है । जिससे बिजली का बिल अधिक आएगा चुकी अभी बिल को ऑनलाइन भरने की प्रक्रिया चालू है और सरकार ने 15 मई तक कोई पैनल्टी न लगाने का एलान किया हुआ है । लेकिन इस समय पीएम प्रधानमंत्री के एक आह्वान को कोई नही मान रहा है वो है सैलरी नही काटने का प्राइवेट नौकरी करने  वाले लगभग 95 % लोगो की सैलरी नही दी गयी है और न दी जाएगी कम्पनी और नियुक्ता बोल रहे है कि आप घर रहें कम्पनी भी बन्द थी अब जब कम्पनी ही घाटे में है तो आपको पैसे कहाँ से दिए जाएं । वही भारत मे अनेकों लोग है जो किसी दुकान पर नौकरी करके अपना जीवन यापन करते है । उन्हें भी उनके मालिक कह रहे है जब दुकान खुली ही नही तो सैलरी कहाँ से दी जाए । जबकि सारी कम्पनी एवं नियोक्ता इतने सक्षम है कि वर्ष भर भी अपने कर्मचारियों को घर बैठे सैलरी दे तो भी उनको कोई प्रभाव न पड़े लेकिन लॉक डाउन की आड़ लेकर वे इन कर्मचारियों का शोषण कर रहें है । सरकार ने बेहद गरीब और गरीब के लिए योजना बना दी अच्छी बात भी है हम इसका समर्थन करते है लेकिन मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए कोई योजना नही बनाई । भारत देश में मध्यमवर्गीय परिवार की संख्या करोड़ो में है और देश के संसाधन संरक्षण, उत्पादकता और श्रम में इनका बहुत बड़ा योगदान है।

अनेको मध्यमवर्गीय परिवार किराए के मकान में रहते है और हर महीने जो कमाते है उसी से मकान-दुकान किराया जमा करते है लेकिन इस महीने जब उनको कोई वेतन नही मिला तो वो कैसे किराया जमा करेंगे ? अभी किराया न जमा किया तो लॉक डाउन खुलते ही मकान मालिक उनसे मकान खाली करवा लेगा । तब उसकी सुनने वाला कोई नही होगा । 

मध्यमवर्गीय परिवार ना तो किसी से मुफ्त राशन की मांग कर सकता है ना ही किसी लोक कल्याणकारी संस्था के आगे हाथ फैला सकता है । देश के सभी राजनीतिक दलों के सहानुभूति लिस्ट में ये वर्ग नहीं है । मध्यमवर्ग बेहद स्वाभिमानी वर्ग है । यह भूखा सो जाएगा लेकिन किसी के आगे मांगने नही जाएगा इसी कमजोरी को  सरकारों ने पकड़ रखा है । इन्हें कुछ न मिलने पर भी यह विरोध करेंगे नही इसी लिए इनके लिए कोई योजना भी नही बनाई जाती है । यह हमेशा से शोषित वर्ग रहा है । इसमें सभी जाति धर्म एवं वर्ग के लोग शामिल है । यह वर्ग भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और तार्किक आधारभूत संरचना है। इसको मदद करने से देश और समाज का बड़ा वर्ग लाभान्वित होगा। भारत सरकार और राज्य सरकार मध्यम वर्ग के लिए कल्याणार्थ फंड की घोषणा करें। क्योकि यह वर्ग अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है कोई सरकार इनकी मदद नही करती । इस वर्ग को पीएम मोदी से बहुत उम्मीद है आगे देखना है यह उम्मीदें पूरी होती है या नही । सरकार ने लोन की क़िस्त भी अभी न जमा करने का एलान किया था अच्छा एलान था लेकिन 3 महीने बाद वो सारी क़िस्त एक साथ जमा करनी होगी वो भी ब्याज सहित जो मध्यमवर्गीय परिवार पर बहुत ज्यादा घातक होने वाला है । आपको ऐसे प्रत्येक नागरिक के खाते में 1 हजार रुपये जमा करने थे जो कि सलाना 5 लाख से कम कमाते है । सरकारी तंत्र की हर लाभकारी योजनाएं सिर्फ ओर सिर्फ गरीबी के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों तक सिमटी हुई है । सरकारी कर्णधारों ने सरकारी योजनाओ का आधार सिर्फ बीपीएल कार्ड को ही माना है । कमोबेश इसका खमियाजा उन मध्यम वर्गीय परिवारों को भुगतना पड़ता है जो ईमानदार है । हम उन मध्यम वर्गीय परिवारों की बात कर रहे हैं जिन्हें सरकारी तंत्र ने सिर्फ वोट देने तक ही सीमित रखा है । हाल ही में लॉक डाउन में सरकार ने सभी बीपीएल कार्ड धारियो को कई फ्री की सरकारी योजनाओ का लाभ दिया है ।  सरकार की नीति पर अब देश के करोड़ों मध्यम वर्गीय परिवार भी सवाल उठाने पर मजबूर हैं । 

लॉक डाउन में सरकार ने मध्यम वर्गीय परिवारों को जिनके पास बीपीएल कार्ड नहीं है ऐसे मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए कोई मदद न करके उनके दिलो पर कुठाराघात ही किया है । आजादी के बाद आज तक कभी किसी भी दल की सरकार ने मध्यम वर्गीय परिवारों को देखकर नीतियां नहीं बनाई । अब सवाल यह उठता है कि क्या मध्यम वर्गीय परिवार भोजन नहीं करता?

देश के लंबे लॉक डाउन में मध्यम वर्गीय परिवार अब खुद को ठगा सा महसूस कर रहें है । इस समय सरकार ने सभी सरकारी योजनाओ को बीपीएल तक सीमित कर दिया है । उसका मुख्य कारण वोट बैंक है । सरकार मध्यम वर्गीय परिवारों के बारे में तो कुछ सोचती ही नहीं है । सरकार का सारा ध्यान सिर्फ बीपीएल कार्ड धारी पर ही टिका है । 

देश मे ऐसे अनेकों गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार है जिन्होंने अनुचित तरीको से बीपीएल सूची में नाम दर्ज नहीं करवाया और अपनी ईमानदारी का परिचय दिया । उनको सरकार ने लॉक डाउन में क्या लाभ दिया ? 

वर्तमान में हर कोई जुगाड से बीपीएल कार्ड बनवाना चाहता है ओर अनुचित तरीको से बीपीएल कार्ड बन भी रहे है ? अब सवाल ये उठता है कि क्या गरीबी का पैमाना बीपीएल कार्ड  है ? बीपीएल कार्ड बनवाने में जो नियम है उन्हें देखने पर तो ये लगता है कि करीब 70% बीपीएल कार्ड नियमो को ताक पर रखकर ही बनाए गए है । सरकारी तंत्र की विफलता का ये सबसे बड़ा प्रमाण है । 

देश का एक बड़ा हिस्सा मध्यम वर्गीय परिवार का है । जो देश की प्रगति में दिन-रात अपनी ईमानदारी से सहायक है । किन्तु बार-बार इनको नजरअंदाज करने से ऐसे करोड़ो लोगो मे आक्रोश ही पनप रहा है । 

 

(लेख में हमारे सुधि पाठक एडवोकेट पवन राठौर एवं डॉ संध्या पंवार के विचारों को शामिल किया गया है । )


लेखन एवं संकलन मिलिन्द्र त्रिपाठी