लॉक डाउन के बड़े साइड इफ़ेक्ट की संभावना भारत मे 10 करोड़ नए गरीब पैदा होंगे

लॉक डाउन ने देश को कोरोना जैसी भयंकर बीमारी से तो बचा लिया लेकिन बड़े आर्थिक नुकसान से बचना संभव नही है । जान है तो जहान है कि तर्ज पर मोदी जी ने लॉक डाउन लागू किया और यह सही भी था । भारत जैसे देश को इस संक्रमण से बचाने का इससे अच्छा कोई उपाय नही था । कोरोना वायरस को लेकर आईसीएमआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि देश में लॉकडाउन नहीं किया गया होता हो देश में इटली सेे भी बुरे हालात होते। रिपोर्ट के अनुसार, देश में 15 अप्रैल तक 8 लाख 20 हजार संक्रमितों की संख्या होती। ये मरीज हर 30 दिनों में 406 लोगों को संक्रमित कर सकते थे

।लंदन की ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के स्ट्रिंजेंसी इंडेक्स के तहत भारत ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सबसे कड़े कदम उठाए हैं। जबकि, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में अभी तक इसे लेकर सख्ती देखने को नहीं मिली है। भारत का स्ट्रिंजेंसी इंडेक्स 100 है जो कि सबसे ज्यादा है। भारत के इस कदम की दुनियाभर में तारीफ हो रही है। माना जा रहा है कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश के लिए यह फैसला कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए एक अहम कदम साबित हो सकता है। लेकिन क्या देश फिर से उठने को तैयार है । हमारे देश मे बहुत क्षमता है । यदि लॉक डाउन को देश के लोग छुट्टी की तरह मान ले और आने वाले वक्त में एक भी रविवार छुट्टी न लें तो पुनः खड़ा होने की संभावना बन जाएगी । रविवार की छुट्टी को स्वेच्छा से त्यागना होगा । 

यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी (यूएनयू) के एक रिसर्च के अनुसार, अगर कोरोना सबसे खराब स्थिति में पहुंचता है तो भारत में 104 मिलियन यानी 10.4 करोड़ नए लोग गरीब हो जाएंगे। यूएनयू ने विश्व बैंक द्वारा तय गरीबी मानकों के आधार पर यह आंकलन किया। रिसर्च के मुताबिक, विश्व बैंक के आय मानकों के अनुसार, भारत में फिलहाल करीब 81.2 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। यह देश की कुल आबादी का 60 फीसदी हैं। महामारी और लॉकडाउन बढ़ने से देश के आर्थिक हालात पर विपरीत असर पड़ेगा और गरीबों की यह संख्या बढ़कर 91.5 करोड़ हो जाएगी। यह कुल आबादी का 68 फीसदी हिस्सा होगा।इस रिसर्च में दावा किया गया है कि कोरोना की वजह से हालत अगर ज्यादा खराब होते हैं तो आय और खपत में 20 फीसदी की कमी आएगी। हालात खराब होने पर लोअर मिडिल क्लास वाले देशों में 54.1 करोड़ नए लोग गरीबी रेखा से नीचे आ जाएंगे। कोरोना महामारी के कारण पूरी दुनिया में पैदा होने वाले 10 नए गरीबों में से 2 लोग भारत के होंगे। इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि हालात अगर अनुमान से कम खराब होतो हैं उस सूरत में भी कम सेकम 2.5 करोड़ नए गरीब पैदा होंगे। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी इस बारे में चेतावनी देते हुए कहा था कि भारत में 50 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और अपनी रिपोर्ट में संगठन ने कहा था कि कोरोना की वजह से 40 करोड़ से ज्यादा कामगार और गरीब हो जाएंगे। असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी बढने का मतलब है इनकम और खपत में कमी और यूएनयू ने इसी बात का जिक्र अपनी रिपोर्ट में किया है।यदि गरीब देशों के लिए निर्धारित गरीबी के मानक 1.9 डॉलर रोजाना आय (करीब 145 रुपए) को मानें तो भारत में कोरोना संकट के कारण 15 लाख से 7.6 करोड़ अति गरीब की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे। कुल आबादी में 22 फीसदी लोगों की आय 1.9 डॉलर प्रतिदिन से कम है। यहां यह बात गौर करने वाली है कि गरीबी रेखा वालों की आय महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत मिलने वाले मानदेय से भी कम है।


लेखन एवं संकलन मिलिन्द्र त्रिपाठी