जीवन है तो मृत्यु है ,मृत्यु है तभी जीवन है सूख है तो दुख भी है ,अति सुख के बाद दुख का आना तय है प्रत्येक शांति काल के बाद युद्ध होना तय है और भीषण युद्ध के बाद शांति काल का आना तय है, हवा की बहुत ज्यादा शांति तूफान आने का संकेत होती है और जब तूफान बहुत ज्यादा प्रबल हो जाता है तब वहां से वह शांत होना प्रारंभ हो जाता है, समुद्र की लहरें जब पूरे आवेग में होती है तो ऐसा लगता है कि पूरे संसार को लील लेगी परंतु वहीं से वह वापस लौट जाता जाती है जाती है ,यह सब कैसे होता है क्यों होता है क्योंकि प्रकृति अपना संतुलन बनाए रखना चाहती है वह अपने नियमों से बंधी है बहुत सबको समान रूप से प्यार करती है उसके नियम सभी प्राणियों के लिए समान है ,वह निर्जीव सजीव, पशु पक्षी ,जानवर इंसान ,जलचर स्थल चर, आस्तिक नास्तिक जानवर इंसान ,पुण्य आत्मा पापी आत्मा ,भौतिकवादी अध्यात्मिक वादी गरीब अमीर, गोरे काले ,शक्तिशाली निर्बल में भेद नहीं करती, प्रकृति अपने नियमों के अनुसार चलती है वह चाहती है की सभी उसके नियमों का पालन करें वह प्राकृतिक नियमों का पालन होते हुए देखना चाहती है मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए बनाए हुए नियम जो उसने कभी धार्मिक पाखंड के अनुसार बनाएं कभी अपने सुख की प्राप्ति के लिए बनाएं ,आर्थिक प्राप्ति के लिए बनाएं उसके अनुसार वह प्रकृति के नियम से खिलवाड़ कर रहा है विश्व की ज्यादातर सरकारे मानव विकास के नाम पर प्रकृति के नियमों को तोड रही है समुद्र जंगल नदी प्राकृतिक संसाधनों का बहुत ज्यादा दोहन कर रही है ये इतना ज्यादा हो गया है कि प्रकृति का संतुलन ही बिगड़ रहा है कोरोना वायरस हमला भी यही बात बताने की प्रकृति की एक चेष्टा है यदि हमने पशु पक्षी जानवर समुद्री जलचर प्राणियों की हत्या जल्दी ही बंद नहीं करी तो प्रकृति के पास ऐसे हजारों वायरस और उपाय हैं कि वह हमें वह हमारी मनुष्य जाति को समाप्त कर दे इसके के बाद मनुष्य वापस पाषाण युग में चले जाए विश्व की सरकारों को अपना घमंड अहंकार त्याग करके बेवजह के विकास की दौड़ को बंद कर विनाशक हथियार नष्ट कर प्रकृति के नियम अनुसार सत्ता का संचालन करना चाहिए और समुद्र नदिया पहाड़ जंगल जीव जंतु वह का संरक्षण करना चाहिए तभी मानव जाति सुरक्षित रहेगी।
(डॉ अजयसिंह भदौरिया)