भारत में शिक्षा के रूप में युवाओं को ऐसा धीमा जहर दिया जा रहा हैं जो भविष्य के लिए घातक तो है साथ ही साथ देश के नीव के पत्थर को भी कमजोर कर रहा है।
आप को यही पढ़ाया गया होगा कि भारतीय शिक्षा नीति को लार्ड मैकाले ने खत्म किया है।केवल यही सत्य नही है आप को सच्चाई की पहुंच से दूर रखा गया।
जब आप इतिहास को पढोगे तो सच्चाई कुछ और ही होगी
मेने भी जब इतिहास को गहराई से पड़ा तो कुछ और ही तथ्य सामने आए जो में आप के सामने रख रहा हूँ।
गुरुकुल :- वो स्थान जहाँ पर बालक बाल्यावस्था में शिक्षा ग्रहण करता है।
गुरुकुल पहले भारत मे शिक्षा देने का स्थान होता था।
जो कि अब विलुप्त से प्रतीत होते हैं। पहले भारत मे गुरुकुल चला करते थे विद्यार्थी गुरुकुलों में 20-25 साल तक ब्रम्हचर्य नियम का पालन कर विद्या ग्रहण करते थे। उस समय बालक बाल्या वस्था से युवावस्था तक शिक्षा ग्रहण करते थे।
जब वे विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर समाज मे जाते थे तो वह शिक्षा ही संस्कार बन जाते थे।
वे शिक्षा रूपी संस्कार ही भारतीय संस्कृति थी। और इसी प्रकार गुरुकुल भारतीय संस्कृति को बनाए रखते थे।
भारतीय शिक्षा :- गुरुकुल में शिक्षा पद्धति में कुछ इस प्रकार पढ़ाय जाता था कि वे अपनी संस्कृति के अधीन रहते थे।
गुरुकुल में अनिवार्य रूप से अध्य्यन में गीता,शास्त्र, रामायण,वेदों का अध्ययन कराया जाता था।जिसे पड़ कर विद्यार्थी मानसिक स्तर पर भारतीय रहता था, गुरुकुल की विद्या से हर भारतीय पहले अपने हर काम मे निपुणता से करने में सक्षम रहता था।
शिक्षा नीति को खत्म करने की साजिश :- शिक्षा नीति को ध्वस्त करने का कार्य लार्ड मैकाले ने भारत आते ही सन 1835 में ही चालू कर दिया था।मैकाले प्रथम बार सन 1834 में भारत आया और इसने देखा की प्रत्येक भारतीय एक ही प्रकार की शिक्षा ग्रहण करते हुए भी वे अपने-अपने कार्य को तल्लीनता से पूर्ण करते हैं। मैकाले ने भी माना कि भारतीय शिक्षा नीति विश्व की शिक्षा नीति से ज्यादा मजबूत है। मैकाले कहा करता था कि अंग्रेजी प्रभुत्ता कायम रखनी है तो यहा की शिक्षा को बिगाड़ना होगा। मैकाले ने अपने बाप को एक चिट्ठी लिखी जिसमे लिखा है कि यहा की शिक्षा नीति में इस प्रकार फेर बदल किया है कि इस पध्दति से पड़ाहु भारतीय केवल शारीरिक रूप से भारतीय होगा किन्तु मानसिक रूप से वह अंग्रेज हो जाएगा।
शिक्षा नीति को खत्म करने की पहल :- मैकाले अक्सर कहा करता था कि भारतिय संस्कृति और समाज को खत्म करना है तो यहा की शिक्षा नीति को ध्वस्त करना होगा। इसी लिए उसने सन 1835 (indian education act)नामक कानून बनाया जिसके तहत गुरुकुलों को इलिगली घोषीत कर दिया गया। गुरुकुलों की मान्यता को खत्म कर दिया, संस्कृत भाषा पर पूर्ण तया रोक लगा दी। इस एक्ट से कई गुरुकुल बन्द हो गए। इसी प्रकार सन 1857 कोलकाता में पहला कान्वेंट स्कूल खोला वही कान्वेंट स्कूल आज छात्रों का भविष्य खराब कर रहे हैं।
वे कॉन्वेंट स्कूल भारतीय संस्कृति के खिलाफ थे,उस समय भारतीय संस्कृति इतनी अडिग और मजबूत थी कि एक भी भारतीय ने अपने बच्चो का दाखिला स्कूल में नही कराया और वह स्कूल एक साल में बंद हो गया।अंग्रेजों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी स्कूल को चलाने में फिर भी वे एक साल से अधिक स्कूल नही चला पाए।
आजादी के बाद शिक्षा नीति को खत्म करना :- लार्ड मैकाले ने जो षंडयंत्र भारत के खिलाफ शिक्षा नीति को खत्म कर रचा था उसे आजादी के बाद भी उसी षड्यंत्र को मजबूती प्रदान की गई जो आज युवाओ के लिए घातक सिद्ध हो रहा है।
आजादी के बाद शिक्षा नीति खत्म करने की पहल :- जब भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ सरकार का गठन हुआ शिक्षा नीति से सम्बंधित कई बैठके हुई और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को शिक्षा मंत्री बनाया गया उस वक्त जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने पुनः (नोकर पैदा करने वाले केंद्र) कॉन्वेंट स्कूल, कॉलेज,यूनिवर्सिटी पुनः पूरी तैयारी के साथ खोल दिए ओर हमारी शिक्षा नीति पूरी तरह से खत्म हो गई और बचे-कूचे गुरुकुल भी बंद हो गए। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज हमारी संस्कृति खत्म होने की कगार पर हैं। इसी प्रकार कई प्रकार की सिमितियो का गठन हुआ 1964 में दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में सिमिति गठित की गई जिसे 1968 में शिक्षा नीति पर एक प्रस्ताव प्रकाशित किया गया जिसमें ‘राष्ट्रीय विकास के प्रति वचनबद्ध, चरित्रवान तथा कार्यकुशल’ युवक-युवतियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया। मई 1986 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई, जो अब तक चल रही है। इस बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा के लिए 1990 में आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति, तथा 1993 में प्रो. यशपाल समिति का गठन किया गया।
मेरा स्कूल :- कॉलेज-यूनिवर्सिटी से कोई भेद-भाव नही पर इन्ही मे सुचारू रूप से शिक्षा प्रणाली ठीक नही होने के कारण छात्र अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाता है।
कान्वेंट स्कूल :- बात करे कान्वेंट स्कूल की तो यही युवाओ के भविष्य के पतन का कारण बना हुआ है। क्यो कि कॉन्वेंट स्कूल में दर्जे के माध्यम से पढ़ाया जाता है छात्रों को बाल्यावस्था में रिजल्ट के मोह में फसा दिया जाता हैं और उनकी मानसिकता रिजल्ट के कारण पढ़ाई के प्रति बिगड़ जाती है, जिस उम्र में संस्कार सिखने की आवश्यकता होती है उस उम्र में स्कूल द्वारा रिजल्ट के कम-ज्यादा परिणामो की तुलना में फसा कर मानसिक स्थिति को केवल परिणामो के लिए ही बाध्य कर दिया जाता है। उन्ही कॉन्वेंट स्कूलो में अलग-अलग पैटर्नों के माध्यम से पढ़या जाता है CBSE पैटर्न में तो अपने हिसाब से ही शिक्षा पैटर्न बना कर पढ़या जाता है। यह पैटर्न स्कूल संचालकों द्वारा अच्छी कमाई करने के लिए एक पर्टिकुलर दुकान पर ही उपलब्ध कराया जाता है। उन्ही स्कूलो द्वारा पढ़ाई के नाम पर फीस के रूप में लुटा जा रहा है आज कल शिक्षा कमाई का जरिया होने लग गया है जो कि कानूनी अपराध है। स्कूलों द्वारा अलग-अलग ड्रेस-कोर्सेज के माध्यम से अच्छी कमाई की जा रही है जो एक काला बाज़ारी से कम नही है।मेने इस लेखन में स्कूल,कॉलेज,यूनिवर्सिटी को मज़दूर पैदा करने की फैक्ट्री कहा है इसके कहने का तथ्य यह कि वास्तव में आज इनके माध्यम से शिक्षा दी जा रही है वह व्यवहारिक व सांस्कृतिक न होकर केवल नाम मात्र की शिक्षा रह गई है।
जय हिंद जय भारत
लेखक - जीतू पाटीदार ग्राम फर्नाखेड़ी