अपनी बीमारियों या किसी लक्षण के अनुसार ऑनलाइन अपना इलाज ढूंढऩा एक तरह की मानसिक बीमारी का संकेत हो सकता है। चिकित्सकीय भाषा में इस मानसिक बीमारी को साइबर कॉन्ड्रिया या कम्प्यू कॉन्ड्रिया कहा जाता है।आजकल एक चलन देखने को मिल रहा है । किसी भी तरह की बीमारी होने पर डॉक्टर की सलाह के बिना इंटरनेट पर दवाई सर्च की जाती है ।बीमारी न होने के बाद भी व्यक्ति इंटरनेट पर अलग-अलग आकर्षक मेडिकल लिटरेचर पढक़र अपने शरीर में बीमारी के लक्षण बेवजह महसूस करने लगता है। धीरे-धीरे यह स्थिति एक तरह के मनोविकार में बदल जाती है। डॉक्टर्स का मानना है कि ऑनलाइन बताए गए उपायों से लोग अपना इलाज शुरू कर देते हैं और बीमारी बढ़ जाने के बाद डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। फिर उसे ऑनलाइन आर्डर कर दिया जाता है । इस दवा को लेने से अधिकांश लोगो को साइड इफेक्ट होने लगते है, जिसके बाद परेशान होकर मजबूरी में डॉक्टर के पास जाते है । दूसरा चलन है यूट्यूब पर वीडियो देखकर अपने स्वयं के डॉक्टर बनना जिसके कारण भी बहुत नुकसान होता है किसी वीडियो को लाखों व्यूय हो सकते है इसका यह अर्थ नही की वीडियो बनाने वाला बहुत जानकार हो केवल उसका प्रेजेंटेशन अच्छा हो सकता है । में ऐसे कई युट्यूबर को जानता हूँ जो बहुत कम पढ़े लिखे है लेकिन बिना किसी जानकारी के कही से कुछ सुनकर भी अपना वीडियो बना लेते है जिसे लाखो लोग देखते भी है इसपर किसी तरह की रोक भी नही लगाई जा सकती है । लेकिन हमें हमारे स्व विवेक से यह सोचना होगा कि हमारे लिए क्या सही है । दरअसल गूगल सर्च के दौरान कई बीमारियों के लक्षण पढऩे को मिलते हैं जो बिना किसी ठोस डायग्नोसिस के शक पैदा करते हैं। बार-बार ऐसी सर्च करने पर कई बीमारियों के लक्षण दिखाई देने लगते हैं जिनकी तुलना व्यक्ति अपनी जीवनशैली से करने लगता है। इससे व्यक्ति में डर और डिप्रेशन पैदा होने लगता है।
मेडिसिन के साथ ही कई तरह के घरेलू उपायों की जानकारी भी इंटरनेट पर अलग-अलग रूप में रहती है। जिसे ज्यादातर लोग आंख बंद कर फॉलो करना शुरू कर देते हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि यह सभी घरेलू उपाय सभी को सूट करे। कई बार उपाय अपनाने का तरीका भी गलत हो सकता है, जिसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है। साथ ही कई बार कुछ चीजों से एलर्जी होने की भी आशंका रहती है। इंटरनेट के जरिए सेल्फ डायग्नोसिस की बजाय डॉक्टर्स से संपर्क करना चाहिए क्योंकि ज्यादातर सर्च में मल्टीपल रिजल्ट्स आते हैं, जो भ्रांतियां पैदा करते हैैं।
कुछ लोग सस्ते के चक्कर मे झोला छाप डॉक्टरों से भी इलाज करवा लेते है फिर भविष्य में उन्हें रोना पड़ता है, ये झोला छाप डॉक्टरों ने आजकल फार्मेसी के लाइसेंस की जुगाड़ करके अपने मेडिकल डाल लिए है जहां पर यह किसी एम. बी.बी.एस. (MBBS) या एम.डी.(MD)डॉक्टर का बड़ा सा बोर्ड लगा देते हैं । लेकिन मरीज के आने पर स्वयं ही उसको इलाज के लिए राजी कर लेते है और खुद को विषय का ज्ञाता बनाकर दवाई दें भी देते है । सामान्य भाषा मे समझा जाये तो पोस्टर किसी ओर का ओर काम किसी ओर का इन पर कोई कार्यवाही भी नही होती क्योकि इन्होंने बहुत सोच समझ कर जुगाड़ कर रखी है ।इसी तरह देश मे कुछ बच्चे जो अपने देश मे एम.बी.बी.एस.(MBBS) प्रवेश परीक्षा में फेल हो जाते है वो आसपास के देशों से जाकर डिग्री करके भारत मे मासूम जनता पर रौब झाड़ते है, जबकि हाल ही में सरकार द्वारा ऐसे अनेकों डॉक्टरों को अयोग्य माना है, जो अन्य देशों से डिग्री करके आये है, इन रिजेक्टेड डिग्री देने वाले देशों में चाइना की डिग्रियां भी शामिल है । चारकोल से बनी दर्द निवारक दवाएं, जहरीले आर्सेनिक वाली भूख मिटाने की दवा । हर साल अंतरराष्ट्रीय अपराध जगत ऐसी नकली दवाएं बेच कर अरबों रुपये कमा रहा है। यह दवाएं इंटरनेट के जरिए, गैर कानूनी तरीके से बेची जाती हैं। आम तौर पर यह दवाएं कोई असर नहीं करतीं लेकिन कई बार घातक होती हैं और जान भी ले सकती हैं । इनमें केवल दवा का कवर बहुत ही आकर्षक बनाया जाता है और इसी लालच में ग्राहक को फंसा लिया जाता है । आयुर्वेद के नाम पर भी अनेकों दवाएं ऐसी उपलब्ध है जिनको खाने के बाद भी कोई असर आपको नही होगा लेकिन आप सोचेंगे कि आयुर्वेद का असर लेट होता है और आप ऐसी दवा को लगातार खाते रहेंगे जिसके कारण यह दवाएं एक तरफ आपका आर्थिक बोझ बड़ा रही है वही आपको नुकसान भी पहुंचा सकती है । हमे हमारे डॉक्टरों पर भरोसा करना चाहिए क्योंकि वे हमें आमने-सामने देखकर हमारा परीक्षण करके हमे उचित सलाह देते है ।
लेखक - मिलिन्द्र त्रिपाठी