निर्भया को इंसाफ मिला लेकिन यह इंसाफ अधूरा है क्योकि सबसे घिनोना बलात्कारी अभी जिंदा है
ट्विटर पर एक नाम से सर्च करने पर निर्भया के इस सबसे घिनोने अपराधी के बारे में विस्तार से जानकारी और आमजन के गुस्से से भरे कमेंट देख सकते है । जिन्हें में गरिमा के कारण यहां लिख नही सकता । 


आज की सुबह पुरा देश जश्न मना रहा था । इस देश मे 4 बलात्कारियों की फांसी का इंतजार लंबे समय से किया जा रहा था । सुबह निर्भया के साथ दरिंदगी कर हत्या करने वाले दोषियों को फांसी पर लटका दिया गया। इसी के साथ 7 साल के लंबे इंतजार के बाद 20 मार्च 2020 को निर्भया ( Nirbhaya Gets Justice ) को अधूरा इंसाफ मिल गया। सोशल मीडिया ,एवं सड़को पर भी लोगों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया, लेकिन जश्न के बीच लोग इस न्याय को अधूरा बता रहे हैं। अभी भी उनके मन मे एक फांस चुभी हुई है कि एक बलात्कारी अभी तक जिंदा आजाद घूम रहा है ओर इसी बलात्कारी ने निर्भया के गुप्तांग में लोहे की रॉड डालकर उसकी आंते बाहर निकाल दी थी जिसके कारण उसकी तड़प-तड़प कर मौत हो गयी । पूरा देश इस बात से अनजान नही है । कानून के नियमो से बंधा देश इस घिनोने का नाम तक नही ले सकता । 18 वर्ष के होने में केवल कुछ ही दिन पहले किये गए इस घिनोने अपराध की सजा उसे केवल 3 साल सुधार गृह में रखकर छोड़ दिया गया वो भी दस हजार रुपये और सिलाई मशीन इनाम में देकर । देश को दहला देने वाले निर्भया गैंगरेप में छह आरोपियों में से एक घटना के दिन नाबालिग था। हालांकि वह कुछ ही महीनों बाद 18 साल का होने वाला था लेकिन कोर्ट ने मौजूदा कानून के आधार पर उसे नाबालिग मानते हुए सजा देने की बजाए सुधार गृह में भेजने का फैसला सुनाया।निर्भया के दोषियों में से यही एक चेहरा है जिसे आज तक देश ने नहीं देखा है। मालूम हो कि घटना के समय नाबालिग सामूहिक दुष्कर्म में शामिल पांचवां व्यक्ति था। खबरों के अनुसार निर्भया के साथ सबसे अधिक क्रूरता इसी नाबालिग ने की थी।बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने उसकी रिहाई के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में एक अर्जी लगाई थी, जिस पर उच्च न्यायालय ने फैसला देते हुए कहा है कि “क़ानून में जुवेनाइल अपराधियों के सुधार का प्रावधान है, पर अगर अपराधी में कोई सुधार न हो, तो ऐसे में सज़ा बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है।”

इस घिनोने अपराधी के केस को देखने वाले एक अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर न्यूज एजेंसी को बताया था कि " हमने उसे राष्ट्रीय राजधानी से बहुत दूर भेज दिया जिससे कि लोग उसका पता न लगा सकें और वह एक नई जिंदगी शुरू कर सके। वह दक्षिण भारत में कही कुक का काम कर रहा है।​उसका नियोक्ता उसके वास्तविक नाम के बारे में नहीं जानता और वह उसकी पिछली जिंदगी से भी अवगत नहीं है।  अधिकारी ने कहा कि हम उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते रहते हैं जिससे कि वह किसी की नजर में न आ सके।"

 

कानून के जानकरों का कहना है कि 

किशोर अपराधियों का वर्गीकरण किया जाए, किशोर की परिभाषा में उम्र को 16 वर्ष तक किया जाए ताकि नृशंस अपराधियों को फांसी जैसी सख्त सजा मिल सके।

 

(उक्त केस में प्रयुक्त नाम की पुष्टि हम नही करते है यह सोशल मीडिया यूजर द्वारा दी गयी जानकारी पर आधारित है ) 

 


लेखन एवं संकलन मिलिन्द्र त्रिपाठी