जब नेताओं और कार्यकर्ताओं के आत्म सम्मान पर चोट होगी तो इस्तीफों की बरसात भी होगी


ज्योतिरादित्य सिंधिया की गिनती उन नेताओं में होती थी, जो हमेशा राहुल गांधी के करीबी रहे है । राहुल गांधी जब कांग्रेस के अध्यक्ष थे, तब ज्योतिरादित्य सिंधिया की गिनती उनके करीबियों में होती थी ।  यहां तक कि लोकसभा में भी दोनों नेता एक साथ ही बैठते थे । लेकिन अभी बीते एक साल में वो राजनैतिक करियर में गिरावट के दौर से जूझ रहे थे । पहले 2018 में कमलनाथ से वे राज्य के मुख्यमंत्री पद की होड़ में पिछड़ गए और उसके बाद अपने संसदीय प्रतिनिधि रहे केपी यादव से 2019 में परंपरागत लोकसभा सीट गुना में उन्हें हार का सामना करना पड़ा ।



मध्यप्रदेश में ताजा राजनैतिक हालत को यदि आप बारीकी से देखेंगे तो पाएंगे जो हुआ वो किसी भी दल के साथ हो सकता है । लेकिन कांग्रेस में ऐसा ज्यादा होता है, क्योंकि आज की कांग्रेस अलग - अलग क्षत्रपों के वजूद पर अंतिम सांसे गिन रही है । यह क्षत्रप अपने आप मे कांग्रेस से भी बढ़कर है जैसे पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह उन्हें जरूरत ही नही की पंजाब में आकर सोनिया ,राहुल ,प्रियंका कोई प्रचार करें वहां कांग्रेस न होकर अमरिंदर सिंह ही सब कुछ है लेकिन उन - पर दवाब बना रहे इस लिए कांग्रेस के शीर्ष लीडर सिद्धू को बीच - बीच मे उचकाते रहते है, फिर बात आती है मध्यप्रदेश की यहां पर कांग्रेस को देखकर किसी ने वोट दिया ही नही था कांग्रेस को वोट देने वालो ने तो सिंधिया का फोटो देखकर वोट दिया था लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने कोयला फ़िल्म जैसा नाटक किया उन्होंने हीरो का फोटो दिखाकर जनता को एक कुरूप दंगो में लिप्त ,गांधी खानदान के खानदानी चापलूस को मुख्य भूमिका सौप दी । फिर चालू हुआ शह ओर मात का खेल कैसे दिग्गविजय ,सिंधिया को लोकसभा चुनाव हरवा कर ओर केवल अकेले अपने बेटे को चुनाव जिताकर बाकी सबको नीचा दिखाया गया । उससे भी बड़ी बात भोपाल में सिंधिया ने जो बंगला मांगा था उन्हें न देकर खुद के बेटे को वो ही बंगला दिया गया । फिर सिंधिया का बयान की यदि वचन पत्र में लिखे वादे पूरे न होंगे तो सड़क पर आएंगे पर कमलनाथ का पलटवार की जिसको उतरना है उतर जाए । सामान्य भाषा मे इसे कहाँ जाता है जाओ जो करना है कर लो ।



ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस्तीफे में लिखा था कि पिछले एक साल में उनके साथ पार्टी में जो बर्ताव किया गया, उसका ही नतीजा है आज वह अलविदा कह रहे हैं । वैसे सिंधिया परिवार में केवल ज्योतिरादित्य ही अकेले कांग्रेस में शेष रह गए थे । उनकी ही दादी की मुराद आज पूरी हो रही है जो चाहती थी कि पूरा सिंधिया परिवार भाजपा में एक साथ रहें । 1967 में विजयराजे सिंधिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डी.पी. मिश्रा की सरकार को गिराया था और जनसंघ के विधायकों के समर्थन से गोविंद नारायण सिंह को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था । सिंधिया वर्चस्व वाले नेता थे बार - बार उनका अपमान होने से वे आहत थे, लगातार उपेक्षा से उनका आत्म सम्मान प्रभावित हुआ, राहुल गांधी ने कोई हस्तक्षेप नही किया बात और बिगड़ गयी । दिग्विजय सिंह बात को ज्यादा बिगाड़ना चाहते ही थे उनका एक तीर से 2 विरोधी मर रहे थे इस लिए उनके मन मे लड्डू फुट रहें थे । सिंधिया जिनका पुरे प्रदेश में वर्चस्व है उनके इस्तीफे देते ही उनके 22 विधायक समर्थक भी पार्टी छोड़कर चले गए । इसी के साथ ही कांग्रेस मध्य प्रदेश में अल्पमत में आ गई है और अब विधानसभा में बहुमत का संकट बरकरार है । पूरे प्रदेश से विधायक ,मंत्री और अनेकों प्रदेश पदाधिकारी, जमीनी नेता ने एक पल की देर नही की ओर कांग्रेस में एक साथ हजारों इस्तीफे पहुंच गए जो सिलसिला लगातार जारी है । युवा जो सिंधिया को देखकर जुड़ा था वो भी कांग्रेस को छोड़कर चला गया । किसी भी नेता या कार्यकर्ता के आत्म सम्मान पर जब लगातार चोट होगी तो परिणाम इस्तीफों की बरसात के रूप में ही सामने आएगा । वही सोशल मीडिया पर होली के दिन लोगो ने डबल मजा लिया । कांग्रेस पर जमकर कार्टून बनाये गए । बुरा न मानो होली है के साथ कांग्रेस को लोगो ने चटकारे ले लेकर ट्वीट किए । कुछ ने तो राजस्थान में भी जल्द ही भाजपा सरकार की घोषणा कर दी है । 


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लेखक - मिलिन्द्र त्रिपाठी