आज कल हर गली में स्कूल खुल गए और हर स्कूल की बसें होने लगी लेकिन सुरक्षा की बात की जाए तो इन बसों में कोई सुरक्षा नही न कोई कैमरे न कोई सुरक्षा उपकरण न महिला कन्डेक्टर की अनिवार्यता इनमें से किसी भी बात का पालन नही किया जा रहा । अभिभावक अपने कलेजे के टुकड़े को इन बसों में छोड़कर घर आ जाते है घर से लेकर स्कूल तक के सफर में उनके साथ क्या घटित हो रहा है इसकी जानकारी न तो स्कूल प्रबंधन को होती है न पालकों को ऐसे में वो बच्चे और अधिक शिकार होते है जिनके स्टॉप सबसे लास्ट में होते है । जहां तक जाते - जाते पूरी बस खाली हो जाती है यह स्थिति जब ओर भयानक हो जाती है जब आखरी स्टाप वाली स्टूडेंट छात्रा हो । बस ड्राइवर कन्डेक्टर उनके साथ गिरी हुई हरकतों को अंजाम दे देते है कई बार बच्चे बता भी नही पाते और चुपचाप सब सहते रहते है । घटना शाजापुर की है जिसने निर्भया केस को फिर दोहराया गया । न्याय व्यवस्था से लोगो का विश्वास उठ गया है वही निर्भया केस के अपराधियों को फांसी में मिल रही छूट ओर देरी से ऐसे अपराधियों के हौसले बुलंद है यदि निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा उसी समय तत्काल मिल गयी होती तो आज ऐसे अपराधियों की रूह कांप जाती । शाजापुर में स्कूल से घर छोड़ने जाने के दौरान एक 13 वर्षीय 8वीं की छात्रा के साथ स्कूल बस के ड्राइवर ने अपने साथी के साथ मिलकर ज्यादती की। करीब साढे चार घंटे तक ड्राइवर सहित उसके 6 साथी बच्ची के साथ अश्लील हरकतें करते रहे। शुक्रवार रात करीब 9.30 बजे वे छात्रा को अर्नियाकलां गांव छोड़कर भाग गए। शुक्रवार को सभी बच्चों को घर छोड़ने के बाद जब पीड़िता बस में अकेली रह गई तो ड्राइवर अजय ने अपने दोस्त अमित को बुला लिया उसके बाद 5 ओर दोस्तो को बुला लिया गया एक मासूम बच्ची पर किसी ने दया नही की 4 घण्टे तक उसके साथ जो बीती उसकी कल्पना मात्र से दिल सहर उठता है । वही दूसरी ओर रेल भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नही रही
2017 और 2019 के बीच रेलवे परिसर और चलती ट्रेनों में 160 से अधिक बलात्कार (Rape) के मामले सामने आये, यह जानकारी आरटीआई के एक जवाब में सामने आयी है. बलात्कार के मामलों की संख्या 2017 में 51 से कम होकर 2019 में 44 हो गई लेकिन 2018 में ऐसे मामलों में वृद्धि हुई थी, जब ये बढ़कर 70 हो गए थे । महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के अलावा अपराध के 1672 मामले हुए हैं जिसमें से 802 रेलवे परिसर में जबकि 870 ट्रेनों में हुए । हमारे देश मे लगातार बढ़ रहे बलात्कार की इन घटनाओ के बावजूद दरिन्दों को फांसी की सजा नही दी जाती जिससे ऐसे अपराधियों के हौसले बुलंद हो जाते है 2004 के बाद से किसी रेप के अपराधी को फांसी नही दी गयी ।
भारत में बलात्कार के मामले में फांसी की आखिरी सजा अब से 14 साल पहले दी गयी थी। मामला पश्चिम बंगाल का था। इस मामले में भी 15 साल तक मुक़दमा चला था। कोलकाता में एक 15 वर्षीय स्कूली छात्रा के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के मुजरिम धनंजय चटर्जी को 14 अगस्त 2004 को तड़के साढ़े चार बजे फांसी पर लटका दिया गया था। 14 साल तक चले मुक़दमे और विभिन्न अपीलों और याचिकाओं को ठुकराए जाने के बाद धनंजय को कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दे दी गई थी। धनंजय को अलीपुर जेल में फाँसी के फंदे पर क़रीब आधे घंटे तक लटकाए रखा गया जिसके बाद उसे पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। कोलकाता के टॉलीगंज के रहने वाले जल्लाद नाटा मलिक ने धनंजय को फाँसी देने का काम अंजाम दिया था । 15 साल मुकदमा चलने के बाद फांसी कितना दुखद है फांसी के लिए 15 साल तक का इंतजार उससे भी ज्यादा दुखद फांसी से ऐसे अपराधियों को छूट देना । निर्भया केस में 7 साल हो गए आज तक फांसी नही दी गयी । अपराधियों ने फांसी टालने के इतने हतकण्डे अपना रखे है कि देश भर में गुस्सा बढ़ता जा रहा है । 1996 का मामला याद कीजिये याद कीजिये, 16 बरस की स्कूली छात्रा को अगवा कर 40 दिनों तक 37 लोगों ने बलात्कार किया। कांग्रेस नेता पीजे कुरियन
का नाम उछलने से मामले ने राजीनितक रंग भी ले लिया। नौ साल बाद 2005 में केरल हाईकोर्ट ने मुख्य आरोपी के अलावा सभी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। विरोध हुआ, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की दोबारा सुनवाई के आदेश दिए, इस बार सात को छोड़ ज़्यादातर को सजा हुई, लेकिन कई आरोपी अभी भी कानून की पहुंच से बाहर हैं। इधर पीड़िता की आधी उम्र निकल चुकी है। उसे ना अपने दफ्तर में सहज सम्मान मिल पाया ना समाज में। पड़ोसियों की बेरुखी से परेशान उसका परिवार कई बार घर और शहर बदल चुका है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि महिलाओं के लिए बलात्कार का खतरा पिछले 17 सालों की तुलना में लगभग दोगुना हो गया है, एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2001‐2017 के बीच पूरे भारत में कुल 4,15,786 बलात्ककार के मामले दर्ज हुए, पिछले 17 सालों के दौरान पूरे देश में प्रतिदिन औसतन 67 महिलाओं के साथ बलात्कार हुए, यानी 17 सालों में हर घंटे औसतन तीन महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है । अब तो 3 सालों से सरकार ने बलात्कार के आंकड़े जारी करना ही बन्द कर दिया है ।
लेखन एवं संकलन - मिलिन्द्र त्रिपाठी