प्रदर्शन के नाम पर सड़कों पर कब्जे का किसने दिया अधिकार, खाली करो शाहीनबाग के गूंजे नारे

 


   सड़क जिस पर चलकर हम हमारे गंतब्य तक पहुंचते है लेकिन कल्पना कीजिये कि आपके घर के बाहर की सड़क पर कोई कब्जा कर ले और आपको और आपके परिवार को घर के अंदर अनिश्चित काल के लिए बंधक बना दिया जाए । तब आप पर क्या बीतेगी और साथ मे उल्टे सीधे भाषण ,उल्टे सीधे नारो का शोर जबरन आपके कानो में घुसाया जाए तो मानसिक रूप से आप परेशान हो जायेगे । न तो आप चैन से सो पाएंगे न चैन से भगवान की पूजन कर पाएंगे । मनोविज्ञान में इसे अपराध कहाँ गया है या यूं कहें यह किसी को परेशान करके मानसिक अशांति का हथकंडा है । बच्चे स्कूल न जा पाए ,पूजन करने वाले मंदिर न जा पाए , दवाई-गोली लेने तक जब आप नही जा पाएंगे तब आप क्या करेंगे ? यह केवल कल्पना नही है जागिये साहब ये हमारे देश भारत के शाहीनबाग में लगातार 50 दिन से चल रहा है । दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पिछले 50 दिनों से हजारों लोग शाहीन बाग में धरने पर बैठे हैं। रविवार को पहली बार शाहीन बाग के धरनों के विरोध में स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन किए। इनकी मांग थी कि धरने पर बैठे लोगों ने नोएडा और कालिंदी कुंज को जोड़ने वाली सड़क पर कब्जा कर रखा है। इसकी वजह से लोगों को आने-जाने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। सैकड़ों की संख्या में पहुंचे प्रदर्शनकारियों ने ‘शाहीन बाग खाली करो’ और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए। पुलिस ने 50 से अधिक लोगो को गिरफ्तार किया है । चुकी दिल्ली में चुनाव है इस लिए वहां की केजरीवाल सरकार शाहीनबाग से अवैध कब्जा धारियों को हटा नही रही है ।सीएए के विरोध में डेढ़ महीने से ज्यादा समय से चल रहे प्रदर्शन की वजह से परेशान हो रहे आम लोगों का धैर्य अब जवाब दे रहा है। इसी का परिणाम है रविवार को बड़ी संख्या में लोगों ने इस धरने के खिलाफ प्रदर्शन किया। लोगों ने शाहीन बाग की सड़कों को खाली करने के लिए नारेबाजी की। लोगों के प्रदर्शन को देखते हुए इलाके में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई है। वोट बैंक का सवाल है वर्ष 2013 में जंतर-मंतर पर 7 दिन धरना और हड़ताल करने का मुझे भी अनुभव है तब मैंने वहां देखा था कुछ लोग वहां सालों से धरना दे रहे थे । बड़ी बारीकी से अध्ययन करने पर पाया कि ये वो लोग है एक तरह के अवैध कब्जाधारी है । यही मेने पहली बार देखा कि भूख हड़ताल के नाम पर बैठे लोग दिनभर में 5 बार छुप-छुप कर खाना खा रहे थे । परन्तु अब मामला अलग है 50 दिन से एक सड़क पर कब्जा किया हुआ है । यह सड़क सार्वजनिक सम्पत्ति है । यदि कुछ व्यक्तियों का समूह मस्जिद के सामने गेट पर धरने पर बैठ जाये तब क्या होगा ? साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश के तहत उसे अंदर कर लिया जाएगा। हाल ही में CAA के विरोध में भारत बंद का आह्वान किया गया था जो पूरी तरह फ्लॉप रहा यदि बन्द को ही भारत की जनता का सर्वे माना जाए तो पूरा देश सी ए ए(CAA)के समर्थन में नजर आ रहा है । वही आम आदमी पार्टी योगी आदित्यनाथ के दिल्ली में सभा करने के खिलाफ हो गयी है उसने उनकी सभा पर प्रतिबंध की मांग की है । उन्हें डर है कि योगी का एक भाषण के एक एक शब्द से शाहीनबाग में करंट लग सकता है । दिल्ली चुनाव प्रचार के दौरान भी शाहीनबाग की गतिविधि सभी के निशाने पर है । भाजपा उम्मीदवार कपिल मिश्र ने जहां शाहीनबाग को ‘मिनी पाकिस्तान’ करार दिया है वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इसे ‘शेम बाग’ कहा है और प्रदर्शनकारियों को अराजकतावादी से जोड़ा।शाहीन बाग पर संबित पात्रा ने कहा, ''उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एक बयान दिया हैकि वह शाहीन बाग के साथ खड़े हैं । मैं कहना चाहता हूं कि शाहीन बाग में..... अराजकतावादी अराजक तत्वों के साथ खड़े हैं । (संशोधित नागरिकता कानून के बारे में) बहुत बड़ा भ्रम फैलाया जा रहा है ।''
भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता एवं राज्यसभा सदस्य विजय गोयल ने कहा, ''आम आदमी पार्टी अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है। आखिर आप नेता अब तक शाहीन बाग क्यों नहीं गए हैं? ... शाहीन बाग 'शेम बाग' बन गया है।'' उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संशोधित नागरिकता कानून से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी।
 बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों का समर्थन करने के लिए कांग्रेस और सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी आप (AAP) पर हमला बोला। आप छोड़ कर भाजपा में शामिल होने वाले मिश्र ने कहा कि आठ फरवरी को होने वाला विधानसभा चुनाव में दिल्ली की सड़कों पर हिंदुस्तान और पाकिस्तान का मुकाबला होगा। बड़ा सवाल यह है कि धार्मिक स्थलों पर जाने का रास्ता रोकना कहाँ तक उचित है ? यदि ऐसे ही रास्ते अन्य धार्मिक जगह पर जाने से रोके गए तब क्या प्रतिक्रिया हो सकती है उसका जिम्मेदार कौन होगा ? विरोध प्रदर्शन लोकतंत्र का हिस्सा है लेकिन इसकी सीमा तय करने का समय आ गया विरोध के नाम पर आरजकता कब तक आमजन सहन करेंगे । इस पर सरकारों को सज्ञान लेना चाहिए । धरनो के नाम पर अनुमति देने वाले अधिकारी अनिश्चित काल तक धरने की अनुमति कैसे दे सकते है ? शाहीनबाग एवं देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे यह आंदोलन इसमें कहाँ जा रहा है कि हम संविधान बचाने निकले है ? तो प्रश्न आता है कि जब ये ही लोग संविधान का पालन नही कर रहे तो किससे उम्मीद कर रहे है कि लोग इन अराजकतत्वों को संविधान रक्षक बोले ? सड़क खुलवाने के लिए एक भटका हुआ नौजावन उग्र हो गया । रविवार को हुए प्रदर्शन से एक दिन पहले शनिवार को धरने की जगह के पास एक शख्स ने फायरिंग की थी। पुलिस की पूछताछ में आरोपी शख्स ने अपना नाम कपिल गुर्जर बताया। वह पूर्वी दिल्ली के दल्लूपुरा का रहने वाला है। पकड़े जाने के बाद उसने कहा- इस देश में सिर्फ हिंदुओं की चलेगी। उसने पुलिस से कहा कि उसके अपने ही देश में कैसे कुछ मुट्ठी भर लोगों ने शाहीन बाग में सड़क पर कब्जा किया हुआ है। उसे इस बात का गुस्सा था और वह सड़क खुलवाने के लिए वहां पहुंचा था। आखिर किसी व्यक्ति को इतना गुस्सा आ गया कि वो फायरिंग करने पर आमादा हो गया तब तो मामले पर गहन चिंतन की जरूरत है । आखिर उस एक नौजावन को इतना क्रोध क्यो आया ? फिर उसके अगले दिन इतनी बड़ी तादात में लोग शाहीनबाग के ख़िलाफ़ सड़को पर उतरे । इसका सीधा सा उत्तर है वहां रहने वाले आमजन सी ए ए(CAA) विरोधी इस धरने से परेशान हो रहे है ? कल धरने में शामिल लोगों के बयान से यही प्रतीत हो रहा है । इसका अर्थ हुआ देश की बहुत बड़ी आबादी सरकार के पक्ष में है और ऐसे ही और काठोर कानून लागू करने की मांग सोशल मीडिया के माध्यम से लोग करने लगे है । अमित शाह का वह बयान की हम पीछे हटने वालो में से नही कोई कुछ भी कर लें कानून वापस