राष्ट्रवादी एकता से घबराए विदेशियों का रोना शुरू


हमारे देश की एकता ,अखंडता ओर शांति से विदेशी ताकते घबरा गई है । जिस भारत को वो जानते थे वहां धर्म के नाम पर दंगे ओर झगड़े होते थे । दूर देशों में बैठे विदेशी मुस्कराया करते थे कि भारत के लोग आपस मे लड़ते रहेंगे और हमेशा अविकसित बने रहेंगे । भारत की कमजोरी थी धार्मिक जहर फैलाकर दंगे कराना बेहद आसान था । इससे भारत की छवि दुनिया भर में धूमिल थी । आज का भारत नया भारत है जो दुश्मनों को घर में घुसकर मारता है जिसके कारण देश मे होने वाले आतंकवादी हमले बन्द हो गए । भारत तेजी से विकास की ओर बढ़ने लगा भारत की सरकार ऐसे मुद्दे आसानी से हल करने लगी जो किसी ने सपने में नही सोचा था धारा 370 ,राम मंदिर ,नागरिकता संसोधन कानून इसी के जीते जागते उदाहरण है जहां भारत की जनता ने ऐसी एकता का परिचय दिया कि विदेशियों को ओर देश के दुश्मनों को रास नही आया । कुछ देश के दुश्मन देश के अंदर है जिन्हें आप सभी जानते है चंद भटके लोगो को अपने साथ लेकर विदेशी फंड पर यह नकली आंदोलन खड़े करने लगे । जिसका नतीजा यह हुआ कि देश मे छोटे पैमाने पर आगजनी की खबर भी बड़ी बनने लगी शान्त दिख रहे देश को देश के दुश्मनों ने बरगला कर सरकार विरोधी बना कर खड़ा कर दिया । सरकार 70 साल के उलझे मामले सुलझा रही थी देश के गृह मंत्री सीना ठोककर बोल रहे है कि जिसको जितना विरोध करना है कर लो सरकार यू टर्न लेने वाली नही है । ऐसे बयान से विदेशी फंडिंग करने वाले अपने बिलो से बाहर आये और उन्होंने रोना शुरू कर दिया । 


इनके रोने को इनके बयान के माध्यम से समझते है :- 



दावोस में चल रहे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में अमेरिकी अरबपति ओर अपने आप को समाजसेवी कहने वाले जॉर्ज सोरोस ने अपने मनगढ़त विचार रखे। भारत मे राष्ट्रीयता के मुद्दे पर सोरोस ने कहा कि "अब इसके मायने ही बदल गए हैं। भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। वे अर्धस्वायत्तशासी मुस्लिम क्षेत्र कश्मीर में दंडनीय (अनुच्छेद 370 को हटाना) कदम उठा रहे हैं। साथ ही सरकार के फैसलों (नागरिकता संशोधन कानून) से वहां रहने वाले लाखों मुसलमानों पर नागरिकता जाने का संकट पैदा हो गया है।" अब इन महाशय ने न तो भारत को ठीक से जाना न कभी कश्मीर के लोगो की समस्या को समझा बस ले देकर जो मन मे आया बिना सोचे समझे अपनी जुबान हिला दी । यह भारत का न इतिहास जानते है न भूगोल इन्हें अधिकार किसने दिया कि यह विदेशी हमारे देश के ऊपर उंगली उठाये यह मुद्दा हमारे देश के लोगो का है तुम बाहरी तत्व क्यो गलत बयानबाजी कर रहे हो ? तुम्हे जो बोलना है तुम्हारे देश के बारे में बोलो हमारे देश मे हस्तक्षेप बर्दास्त नही किया जाएगा । ये विदेश यह तो बताए कि क्या तुम्हारे कहने से हम घुसपैठियों को देश मे रख ले तुम्हे इतना ही दर्द हो रहा है तो क्यो न रोहिंग्या को तुम्हारे देश मे छोड़ दिया जाए । खुद के देश मे बॉर्डर खत्म कर दो दीवार हटा दो तुम ले लोना सारे घुसपैठियों को हम क्यो हमारे देश मे उन्हें रखे ? 



अंग्रेजों की एक विवादित मैगजीन की खबर में उनका रोना देखिए :-


ब्रिटेन की विवादित मैगजीन‘द इकोनॉमिस्ट’ ने लिखा है कि "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागरिकता संशोधन कानून के जरिए भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों की अनदेखी कर रहे हैं। वे लोकतंत्र को ऐसा नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिसका असर भारत पर अगले कई दशकों तक रह सकता है। मोदी सहिष्णु और बहुधर्मीय समाज वाले भारत को उग्र राष्ट्रवाद से भरा हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश में जुटे हैं।" अरे अंग्रेज तुम आज बड़ी बड़ी बातें कर रहे हो और तुम्हारे पूर्वज जब इस देश को गुलाम बनाकर रखे हुए थे तब वो कौन सी धर्मनिरपेक्षता का पालन करते थे ? हमारा देश है उसको कैसे विकसित करना है हम जानते है तुम कौन होते हो दखल देने वाले ? तुम्हारे देश के सारे मुद्दे खत्म हो गए क्या जो हमारे देश मे अपने जहरीले विचार घोलने चले आये । मैगजीन है तो क्या कुछ भी छापोगे ? यह मैगजीन भारत मे खूनी संघर्ष की चेतावनी दे रही है ? विचारणीय प्रश्न है कि इस मैगजीन ने कही अपराधी तत्वों को फंड तो ट्रांसफर नही कर दिया ? जो बात खुफिया विभाग को नही मालूम वो 7 समंदर पार बैठे इस जहरीली मानसिकता की मैगजीन को मालूम है ? सरकार को इस मैगजीन की जांच करवाना चाहिए ? 



हर कोई भारत के मामले में आधी रोटी में दाल क्यो लेता है ? - 


सोचने का विषय है कि हमारा देश विविधता वाला देश है इसे इस देश का नागरिक ही समझ सकता है । तो यह विदेशी किसके इशारे पर जहर घोल रहे है ? कही इसके पीछे बहुत बड़ी साजिश की बू आ रही है ? ऐसे लेखक ए. सी. कमरों में बैठकर टेबल रिपोर्टिंग के जरिये इतने बड़े देश के संवेदनशील मुद्दे पर बोलने की हिम्मत कैसे जुटा लेते है ? देश मे अशांति भंग करने और भड़काऊ लेख प्रकाशित करने पर अंतराष्ट्रीय कानून के तहत ऐसे लेखकों पर कानूनी कार्यवाही की सख्त जरूरत है । 


(बयान सोर्स गूगल न्यूज )