आधुनिकता के दौर में सोशल मीडिया हम सबका प्रिय है । एक साथ 10 व्यक्ति बैठे है लेकिन वे आपस मे बात नही कर रहे होते है बल्कि अपने अपने मोबाइल में व्यस्त रहते है इसे ही सोशल मीडिया की लोकप्रियता कहा जायेगा । अब सोचिये कुछ तो इसकी इतनी अधिक लत पाल लेते है कि उनको छुटकारे के लिए डॉक्टर की सलाह ओर उपचार की आवश्यकता महसूस होती है । किसी ने कुछ भ्रामक जानकारी यदि सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी तो पल भर में वो पोस्ट अन्य लोग भी शेयर करने लगते है जिससे आंकड़ा देखते ही देखते लाखो का हो जाता है । जिन फेक पोस्टो से सौहार्द बिगड़ता है पुलिस उनपर कार्यवाही करती है लेकिन अनेक ऐसी पोस्ट होती है जो सौहार्द नही बिगाड़ती बल्कि गलत जानकारी परोस कर आमजन की भावनाओ से खिलवाड़ कर देती है ।सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें (Fake News) व वायरल पोस्ट (Viral Post) को नियंत्रित करने के लिए देश में लंबे समय से प्रयास चल रही है, लेकिन अब तक सब नाकाम रहीं हैं।
इस बात के प्रमाण में कुछ जानकारी आपको प्रदान करता हूँ ।
जम्मू-कश्मीर में फेक न्यूज रोकने के लिए मोदी सरकार को संचार सेवाएं बंद करनी पड़ी :-
केंद्र सरकार ने पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35ए समाप्त कर विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने से ठीक पहले वहां मोबाइल व इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी थीं। सरकार का ऐसा मानना था कि संचार सेवाएं चालू रहने पर घाटी में फेक न्यूज और भड़काऊ मैसेज फैलने से शांति व्यवस्था को खतरा पैदा हो सकता है। यह बात सरकार सही भी सोच रही है । करीब एक महीने तक घाटी में संचार सेवाएं पूरी तरह से ठप रहीं और फिर धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से इन्हें शुरू किया गया है। हालांकि अब भी चिन्हित इलाकों में संचार सेवाएं प्रभावित हैं। कश्मीर में संचार सेवाओं पर लगाई गई सरकार की रोक के खिलाफ बहुत से लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर फेक न्यूज या वायरल पोस्ट को नियंत्रित करने का मामला एक बार फिर से गरमा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए जल्द संचार सेवा शुरू करने के लिए निर्देशित भी किया ।
आम नागरिकों के अधिकारों का हिस्सा सोशल मीडिया को बताकर जल्द से जल्द ऐसी सुविधा पर से प्रतिबंध हटाकर पुनः शुरू करने के लिए कहाँ । साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में कहा था कि हमें ऐसी गाइड लाइन की जरूरत है, जिससे ऑनलाइन अपराध करने वालों और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी पोस्ट करने वालों को ट्रैक किया जा सके। सरकार ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि उसके पास सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने की कोई तकनीक नहीं है। तो पूरी दुनिया को तकनीक के कुशल इंजीनियरिंग वैज्ञानिक देने वाला देश ऐसी तकनीक अब तक क्यो नही बना पाया ? यह विचारणीय प्रश्न है । या पुनः देश मे स्मार्ट फोन छोड़कर फीचर फोन लागू कर देना चाहिए ?
भारत के आईटी एक्ट की जानकारी पुलिसकर्मियों तक को नही है -:प्रायः देखने मे आया है कि इस एक्ट की जानकारी अधिकांश पुलिसकर्मियों को ही नही है ।
फेक न्यूज वालो पर आईटी एक्ट का डर नही :- फेक न्यूज वालो पर इस सामान्य से कानून का डर नही है । सरकार को कठोर कानून बनाने पर विचार करना चाहिए ।
किसी की मौत की खबर - हाल ही में लता मंगेशकर के निधन की खबर प्रति दिन चलाई गई । कई पत्रकार साथी तक उन फेक न्यूज में फंस कर एक दूसरे से कन्फर्म करते रहे कि क्या सच मे ऐसा हो गया ? फेक न्यूज वालो की कोई भावना नही होती है इनका असली लक्ष्य है लाखो लाइक ओर लाखो व्यू पाना । इसके लिए यह किसी भी हद तक जा सकते है ।
फोटो शॉप -: सबसे ज्यादा इसी सॉफ्टवेयर से कलाकारी करके किसी को पल भर में बदनाम करने के काम मे यह फेक पोस्ट वाले माहिर होते है । आपका भी सामना ऐसे लोगो से अवश्य हुआ होगा ।
किसी का कटा हुआ वीडियो -: किसी के पूरे भाषण का या विवाद का एक छोटा सा हिस्सा वायरल कर दिया जाता है । उसकी पूरी बात में से उसके विरोधी सिर्फ उसी बात को लेते है जो उसके खिलाफ जाए फिर इसे सोशल मीडिया पर छोड़ दिया जाता है जो वायरल हो जाता है ।
फेक न्यूज वाले नरेंद्र मोदी ,राहुल गांधी ,अमित शाह,अमिताभ बच्चन तक को नही छोड़ते -: फेक न्यूज वाले किसी को नही छोड़ते वो प्रधानमंत्री तक कि फेक न्यूज चला देते है । राहुल गांधी के भाषणों को एडिट करके उन्हें मजाक का पात्र बना देते है । अमिताभ बच्चन को बिना कारण अस्पताल में भर्ती बता देते है । यह किसी भी हद तक जा सकते है ।
समाचार चैनलों के कार्यक्रम के नाम बने "फेक न्यूज पड़ताल" :- अनेको टीवी चैनल के सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम बन गए है । फेक न्यूज की पड़ताल करते उनके न्यूज रिपोर्टर गहन विश्लेषण करके ओर कई बार वीडियो निर्माण स्थल तक जाकर जांच करके सच दिखाते है । वायरल वीडियो की अधिकांश जांच में वो वीडियो फेक पाए जाते है ।
आखिर इसका इलाज क्या है -:
सरकार कठोर से कठोर कानून बनाये फेक न्यूज फैलाने वालों पर लाखों रु के जुर्माने लगाए । साथ ही न जमा कर पाने की दशा में उनको कम से कम 2 साल की कठोर कारावास की सजा दी जाए । तभी हम सोशल मीडिया की उपयोगिता को बचाकर रख पाएंगे ।
लेखक मिलिन्द्र त्रिपाठी