क्या बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी जल्द से जल्द सजा देने के लिए सभी राजनीतिक दल एक होकर कोई ठोस कदम नही उठा सकते ?
आज से 4 दिन पूर्व लिखे गए मेरे लेख में मैने जिस बात का अंदेशा प्रकट किया था आखिर वही हुआ । भारतीय न्याय व्यवस्था में "तारीख पर तारीख" के फिल्मी डायलॉग के चरितार्थ होने का एक ओर जीता जागता उदाहरण आपके समक्ष न चाहते हुए भी प्रस्तुत हो गया । उसी लेख में मैने जिक्र किया था कि 19 साल में सिर्फ एक बलात्कारी को फांसी हुई है । क्योकि की इन बहशी दरिंदो को न्याय व्यवस्था में जो दरवाजे खुले हुए है उसकी जानकारी वकीलों द्वारा मिल जाती है और भारत की जनता के मस्तिष्क में पीड़ा देने वाले 2012 के निर्भया कांड के दोषी अभी तक जिंदा है । अब सोचिए मीडिया में इतने हाइलाइट केस के जब ये हाल है तो जो केस चर्चित नही है उनके क्या हाल होते होंगे ? भारतीय न्याय व्यवस्था में थोड़ा बदलाव करने की मंशा जनता के मानस पटल पर उभर रही है इसे समझना होगा । कम से कम बलात्कार जैसे घिनोने केसों के जल्द निपटारे के लिए सभी दलों को एक होकर काम करने का वक्त सामने आ गया है । लेकिन हमारे सोचने से ओर जनता के आवाज उठाने से भी क्या होगा ? जब तक कि त्वरित निर्णय के लिए सख्त से सख्त कानून सरकारों द्वारा न बनाया जाए ? आज ऐसा क्यो लिखना पड़ रहा है उसकी वजह है । बलात्कारी मुकेश की याचिका पर आज सुनवाई करते हुए जस्टिस मनमोहन और जस्टिस संगीता धींगरा की बेंच ने दोषी को निचली अदालत में अपील करने की छूट दे दी। बलात्कारी मुकेश के वकील ने कहा कि अब हम निचली अदालत में अपील करेंगे। दिल्ली सरकार ने आज सुनवाई के दौरान बेंच को बताया कि जेल नियमों के अनुसार वॉरंट रद्द करने के मामले में दया याचिका पर फैसले का इंतजार करना चाहिए। 22 जनवरी 2020 को चारों दोषियों की फांसी नहीं होगी, क्योंकि इनमें से एक की दया याचिका लंबित है। इस स्थिति में डेथ वॉरंट रद्द करने की मांग करना भी सही नहीं है।
यही बात हर अखबार में प्रकाशित हुई थी कि 22 जनवरी को फांसी से बचने के क्या क्या उपाय अभी बाकी है । चारो बलात्कारी अभी भी योजनाबद्ध तरीके से न्याय का बलात्कार करने में लगे है ? सोचिए आखिर कब होगी फांसी 2012 से 2020 अब तक 8 साल हो गए तो क्या सालों साल यह मामला चलेगा ? तिहाड़ जेल प्रशासन के वकील राहुल मेहरा ने कहा- चारों दोषियों को निश्चित रूप से 22 जनवरी 2020 को फांसी नहीं दी जाएगी यह एक प्रकार से तय हो गया है । राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका रद्द होने के 14 दिन बाद ही फांसी दी जा सकती है। हम नियमों से बंधे हैं, क्योंकि याचिका खारिज होने पर दोषियों को 14 दिन का नोटिस देना जरूरी है। इनका बयान ध्यान से देखिए दर्द इनके बयान में साफ दिख रहा है तिहाड़ जेल प्रसाशन जल्द फांसी की पूरी तैयारी कर चुका है । लेकिन अफसोस अभी उनको न चाहकर भी इंतजार करना पड़ रहा है । जो हैदराबाद इनकाउंटर पर जनता पर सवाल उठा रहे थे की उन्होंने पुलिस पर फूल बरसा कर गलत किया किसी को ऐसे मारना मानव अधिकार का उल्लंघन है वो क्या चाहते है इन राक्षसों के मानव अधिकार होने चाहिए क्या ? आपको लगता है क्या की ये मानव है ? बलात्कार जैसे केस में जनता जल्द से जल्द निर्णय चाहती है इसे समझना ही होगा । निर्भया की माँ के दर्द को जरा इस बयान से समझिए उन्होंने कहा कि वकील दोषियों के फांसी पर लटकने में देरी कर रहे हैं या हमारे सिस्टम की आंखों पर पट्टी बंधी है ? जो अपराधियों का साथ दे रहा है? मैं 7 साल से लड़ाई लड़ रही हूं। मुझसे पूछने की बजाय सरकार से पूछा जा रहा है कि गुहगारों को 22 जनवरी को फांसी दी जाए या नहीं। इस बयान में एक माँ की पीड़ा को समझिए यह दर्द इस अकेली माँ का नही है बल्कि देश मे रोज हो रहे 90 बलात्कार पीड़िता के परिवारों का भी है । यह घिनोना कृत्य दरिंदे करते है वो बेख़ौफ़ है पिटीशन पर पिटीशन लगा रहे है लेकिन उसके बाद बलात्कार के केस में चलने वाली सालों साल मिलने वाली तारीख से सिस्टम पीड़िता सहित उसकी परिवार को मानसिक प्रताड़ना ही तो देता है ? क्या यह इंशाफ है ? न्याय में देरी भी अन्याय है फिर यह अन्याय भारत मे इतना अधिक क्यो होता है ?
बलात्कारी मुकेश ने आज कोर्ट से कहा है कि उसकी दया याचिका दिल्ली के उपराज्यपाल और राष्ट्रपति के पास लंबित है। इस पर फैसले के लिए फांसी से पहले उसे 14 दिन का वक्त दिया जाए। अरे राष्ट्रपति महोदय जी और उपराज्यपाल महोदय जी जैसे आप रातों रात सरकार बनाने के लिए जगते है तो इन राक्षसों की दया याचिका खारिज करने में आप क्यो इतना विलम्भ कर रहे है ? तुरन्त इन दरिंदो को फांसी होना चाहिए क्यो आप फाँसी को टालने में अपनी भूमिका निभा कर पाप के भागीदार बन रहे है । इससे ओर बलात्कारियों को हौसला मिलेगा की देश मे तो बलात्कार पर फांसी की सजा होती ही नही है ? सारे नेताओं से जनता का आग्रह है कि या तो सख्त कानून बनाओ या फिर बड़े बड़े भाषण देकर मत कहना कि देश मे इतने बलात्कार क्यो बढ़ रहे है ? घड़ियाली आंसू मत बहाना क्योकि हर एक बलात्कारी सोच वाला व्यक्ति टीवी पर जब इस केस को देख रहा होगा तो उसका हौसला बढ़ाने का श्रेय आप के सिस्टम को ही जायेगा ?
लेखक -: मिलिन्द्र त्रिपाठी
आखिर हुआ वही जिसका अंदेशा था 22 जनवरी को फांसी पर लटकने से बच गए बलात्कारी